Holi me chudai part 3

  ” हे सुन मैंने अभी गरम गरम गुझिया बनायी है …वो वाली ( और फिर उन्होंने कुछ गुड्डी के कान में कहा और वो खिलखिला के हंस पड़ी), गुंजा से पूछ ले...

 ” हे सुन मैंने अभी गरम गरम गुझिया बनायी है …वो वाली ( और फिर उन्होंने कुछ गुड्डी के कान में कहा और वो खिलखिला के हंस पड़ी), गुंजा से पूछ लेना अलग डब्बे में रखी है..जा.”

वो मुझे बगल के कमरे में ले गयी और उसने बैठा दिया.

हे कहाँ जा रही हो…” मैं फुसफुसा के बोला.

” तुम ना एकदम बेसबरे हो …पागल…अभी तो खुद भागे जा रहे थे और अभी ..अरे बाबा बस अभी गयी अभी आई. बस यहीं बैठो. उसे मेरी नाक पकड़ के हिला दिया और हिरणी की तरह उछलती ९-२-११ हो गयी.

मेरे तो पल काटे नहीं कट रहे थे. मैं दीवाल घडी के सेकेंड गिन रहा था. पूरे चार मिनट बाद वो आई. एक बड़ी सी प्लेट में गुझिया लेके. गरम गरम ताज़ी और खूब बड़ी बड़ी गदराई सी. अबकी सोफे पे वो मुझसे एकदम सट के बैठ गयी. उसकी निगाहें दरवाजे पे लगी थीं.
लो,,


मैंने हाथ बढाया तो उसने मेरा हाथ रोक दिया..और अपनी बड़ी बड़ी आँखे नचा के बोली,
” मेरे रहते तुम्हे हाथों का इस्तेमाल करना पड़े…” उसका द्विअर्थी डायलाग मैं समझ तो रहा था लेकिन मैंने भी मजे लेके कहा,
” एकदम और वैसे भी इन हाथों के पास बहोत काम है
…” और मैंने उससे बाहों में भर लिया. बिना अपने को छुडाये वो मुस्करा के बोली…लालची बेसबरे ..और अपने हाथ से एक गुझिया मेरे होंठों से लगा दिया. मैंने जोर से सर हिलाया.
वो समझ गयी और बोली तुम ना नहीं सुधरने वाले और गुझिया अपने रसीले होंठों में लगा के मेरे मुंह में डाल दिया. मैंने आधा खाने की कोशिश की लेकिन उसकी जीभ ने पूरी की पूरी मुंह में धकेल दी.
” हे आधे की नहीं होती …पूरा अन्दर लेना होता है.” मुस्कारा के वो बोली.
मेरा मुंह भरा था लेकिन मैं बोला “हे अपनी बार मत भूल जाना मना मत करने लगना.”
” जैसा मेरे मना करने से मान ही जाओगे और जब पूरा मेरा है तो आधा क्यों लुंगी..”उसकी अंगुलिया अब मेरे पैम्ट के बल्ज पे थीं. तम्बू पूरी तरह तन गया था.
मेरे हाथ भी हिम्मत कर के उसके उभारों की नाप जोख कर रहे थे.
” हे एक मेरी ओर से भी खिला देना…”किचेन से चन्दा भाभी की आवाज आई.
एक दम गुड्डी बोली और दूसरी गुझिया भी मेरे मुंह में थी…
गुड्डी ने बताया की चन्दा भाभी एक दम बिंदास हैं और उसकी सहेली की तरह भी. उनके पति दुबई में रहते हैं कभी २-३ साल में एक बार आते हैं लेकिन पैसा बहोत है . इनकी एक लड़की है गुंजा ९थ में पढ़ती है. गुड्डी के ही स्कूल में ही..
“हे गुड्डी खाना ले जाओ या बातों से ही इनका पेट भर दोगी…” किचेन से उसकी मम्मी की आवाज आई.
‘ प्लानिंग तो इसकी यही लगती है…” हंस के मैं भी बोला.
गुड्डी जब खाना ले के आई तो पीछे से चन्दा भाभी की आवाज आई.
” अरे पाहून खाना खा रहें हो और वो भी सूखे सूखे …ये कैसे …”मैं समझ गया और बोला की अरे उसके बिना तो मैं खाना शुरू भी नहीं कर सकता.
” अरे इनकी बहनों का हाल ज़रा सूना दो कस के…” भाभी बोली.
” क्या नाम है इनके माल का. ” चन्दा भाभी ने पूछा. बिना नाम के गारी का मजा ही क्या.
गुड्डी मेरे पास ही बैठी थी. उसने वहीँ से हंकार लगाई,
” मेरा ही नाम है …गुड्डी.”
” आनंद की बहना बिकी कोई लेलो…” गाना शुरू हो गया था और इधर गुड्डी मुझे अपने हाथ से खिला रही थी.

” आनंद की बहाना बिकी कोई लेलो…” गाना शुरू हो गया था और इधर गुड्डी मुझे अपने हाथ से खिला रही थी.
अरे आनंद की बहिनी बिके कोई ले लौ …अरे रुपये में ले लौ अठन्नी में ले लौ,
अरे गुड्डी रानी बिके कोई ले लौ अरे अठन्नी में ले लौ चवन्नी में ले लौ
जियरा जर जाय मुफ्त में ले लौ अरे आनंद की बहिनी बिकाई कोई ले लौ.
और अगला गाना चन्दा भाभी ने शुरू किया..
मंदिर में घी के दिए जलें मंदिर में ..
मैं तुमसे पूछूं हे देवर राजा, हे नंदोई भडुए.. हे आनंद भडुए….तुम्हरी बहिनी का रोजगार कैसे चले
अरे तुम्हारी बहिनी का गुड्डी साल्ली का कारोबार कैसे चले ..
अरे उसके जोबना का ब्योय्पार कैसे चले, मैं तुमसे पूछूं हे आनंद भडुए..
“क्यों मजा आ रहा है अपनी बहिन का हाल चाल सुनने में” गुड्डी ने आँखे नचा
के मुझे छेड़ा.
” एक दम लेकिन घर चलो सूद समेत वसुलुन्गा तुमसे..”
” वो तो मुझे मालूम है लेकिन डरती थोड़ी ना hon ..” हंस के मेरी बाहों से अपने को छुडा के वो किचेन में चली गयी.
” वो तो मुझे मालूम है लेकिन डरती थोड़ी ना हूँ ..” हंस के मेरी बाहों से अपने को छुडा के वो किचेन में चली गयी.
गरमागरम पूडियां वो ले आई और बोली कैसा लगा मम्मी पूछ रही थी.
मैं समझ गया वो किसके बारे में पूछ रहीहैं. हंस के मैंने कहा “नमक थोड़ा कम था. मुझे थोड़ा और तीखा अच्छा लगता है. ”
” अच्छा ज्यादा नमक पसंद है ना ऐसी मिर्चे लगेंगी की परपाराते फिरोगे. ” चन्दा भाभी ne सुन लिया था और वहीँ से उन्होंने जवाब दिया. और अगली गाली वास्तव में जबर्दस्त थी.
” ,मैं तुमसे पूछूँ आनंद साले. अरे तुम्हरी बहिनी के कित्ते द्वार…
आरी तुम्हरी बहिनी गुड्डी साल्ली है पक्की छिनार…
एक जाय आगे दूसर पिछवाडे बचा नहीं कोई नौअवा कहांर ,
क्यों साथ दोनों ओर से गुड्डी ने मुस्कारा के मुझसे पूछा. उधर भाभी ने वहीँ से आवाज लगाईं…
” अरे मैं तो समझती थी की बिन्नो के सिर्फ देवरों को ही पिछवाड़े का शौक है तो क्या उसकी ननदों को भी… ”
” एक दम साल्ली नम्बरी छिनार हैं ….” चन्दा भाभी ने जवाब दिया ओर अगला गाना, भाभी ने शुरू किया. मैंने खान धीमे कर दिया था..गालियाँ वो भी भाभियों के मुंह से खूब मस्त लग रहीं थीं.
कामदानी दुपट्टा हमारा है कामदानी ..आनंद की बहिना ने एक किया दू किया ….तुरक पठान किया पूरा हिन्दुस्तान किया
९०० भडुए कालिनगंज ( मेरे घर का रेड लाईट एरिया) के अरे ९०० गदहे…
अरे गुड्डी रानी ने गुड्डी साल्ली ने एक किया दो किया …हमारो भतार किया भतरो के सार किया .
उन्होंने गाना ख़तम भी नहीं किया था की चन्दा भाभी शुरू हो गयीं…
मैं तुमसे पूछी हे गुड्डी बहना रात की कमाई का मिललई,
अरे भैया चार आना गाल चुमाई का आठ आना जुबना मिस्वाई का
ओर एक रुपिया टांग उठवाई का…
तब तक गुड्डी माल पुआ ले के आई.

एक दम तुम्हारे बहन के गाल जैसा है…चन्दा भाभी वहीँ से बोलीं..कचकचोवा…
मैंने गुड्डी से कहा ऐसे नहीं तो वो नासमझ पूछ बैठी कैसे..तो मैंने खीच के उसे गोद में बैठा लिया ओर उसके होंठ पे हाथ लगा के बोला ऐसे.
वो ठसके से मेरी गोद में बैठ के मालपुआ अपने होंठों के बीच लेके मुझे दे रही थी ओर जब मिअने उसके होंठों से होंठ सटाए तो वो नदीदी खुद गड़प कर गयी.
चल तुझे अभी घोंटाता हूँ कह के मैंने उसके होंठ काट लिए.
उय्यीई ,,,उसने हलकी सी सिसकी ली ओर मुझे छेड़ा,” हे है ना मेरी नामवाली के गाल जैसा..कभी काटा तो होगा.”
” ना” मैंने खाते हुए बोला.
” झूठे..चूमा चाटा तो होगा…” ” ना”
” ये तो बहोत नाइंसाफी है. चल अबकी मैं होली में तो रहोंगी ना…उसका हाथ पैर बाँध के सब कुछ कटवाउन्गि..” ओर अबकी उसने मालपुआ अपने होंठों से पास करते, मेरे होंठ काट लिए.
मुझे कुछ कुछ हो रहा था इत्ती मस्ती खुमारी सी लग रही थी…तभी चन्दा भाभी की आवाज आई
“अरे गुड्डी और मालपुआ ले जाओ ओर हाँ अपनी नामवाली के यार से पूचना की अब नमक तो ठीक है ना…”
” भाभी नमक तो ठीक है लेकिन मिर्ची थोड़ी कम है…” मैंने खुद जवाब दिया.
‘ तुमने अच्छे घर दावत दी..” गुड्डी मुझसे बोलते , मुस्कारते , मुझे दिखा के अपने चूतड मटकाते किचेन की ओर गई ओर सच…अबकी चन्दा भाभी की आवाज खूब ठसके से जोर दार ..
” चल मेरे घोड़े चने के खेत में …चने के खेत में…
चने के खेत में बोई थी घूंची …आनंद की बहना को गुड्डी छिनार को ले गया मोची
दबावे दोनों चूंची चने के खेत में….चने के खेत में ……
चने के खेत में पड़ी थी राई ..चने के खेत में…
आनंद साल्ले की बहना को गुड्डी छिनार को ले गया मेरा भाई
कस के करे चुदाई चने के खेत में …चने के खेत में.
अरे चने के खेत में ( अबकी भाभी ने ये लाइन जोड़ी) चने के खेत में पडा था रोड़ा
गुड्डी रंडी को ले गया घोड़ा …चने के खेत में..चने के खेत में…
घोंट रहीं लौंडा…चने के खेत में..
” तो क्या घोड़े से भी चन्दा भाभी ने वहीँ से मुझसे पुछा…बड़ी ताकत है उस साल्ली में”
ओर यहाँ गुड्डी पूरी तरह पाला पार कर गयी थी. बैठी मेरे पास थी लेकिन साथ …वहीँ से उसने ओर आग लगाईं.
” अरे उसकी गली के बाहर दस बारह गदहे हरदम बंधे रहते हैं ना विश्वास हो तो उनके भैया बैठे हैं पूछ लीजिये ..”
” क्यों, चन्दा भाभी ने हंस के पूछा. ” तब तो तुम्हारा प्लान सही था उसको दाल मंडी लाने का…दिन रात चलती उसको मजा मिलाता ओर तुमको पैसा…क्यों है ना.”
तब तक उस दुष्ट ने दही बड़े में ढेर सारी मिर्चे डाल के मेरी मुंह में डाल दी.
मैं चन्दा भाभी की बात सुनने में लागा था. इत्ती जोर की मिर्च लगी मैं बड़ी जोर से चिल्लाया पानी.

‘ अरे एक गाने में ही मिर्च लग गई क्या…हंस के चंदा भाभी ने पूछा.
” ऊपर लगी की नीचे…” भाभी क्यों पीछे रहतीं.
” अरे साफ साफ क्यों नहीं पूछती की गांड में मिर्च तो नहीं लग गई. ” चन्दा भाभी भी ना…
पानी तो था लेकिन उस रस नयनी के हाथ में ओर वह कभी उसे अपने गोरे गालों पे लगा के मुझे ललचाती कभी अपने किशोर उभारों पे ..मुझसे दूर खड़ी.
” ” चाहिए क्या…” आँखे नचा के हलके से वो बोली
” ऐसे मत देना सब कुछ कबूल करवा लेना पहले.” चन्दा भाभी वहीँ से बोलीं.
” ज़रा गंगा जी वाला तो सूना दो इनको…” भाभी ने चंदा भाभी से कहा..
गुड्डी अब पास आके बैठ गयी थी लेकिन ग्लास वाला हाथ अभी भी दूर था…
” बड़े प्यासे हो…” वो ललचा रही थी तड़पा रही थी.
” हाँ…” मैंने उसी तरह हलके से कहा.
” किस चीज की प्यास लगी है …”
” तुम्हारी”
उसने ग्लास से एक बड़ा सा घूँट लिया…ओर ग्लास अपने हाथ से मेरे होंठों से लगा दिया. हंस के वो बोली, जूठा पीने से प्यारा बढ़ता है. ओर मेरे हाथ से ग्लास लेके बाकी बचा पानी पी गयी.
‘ कब बुझेगी प्यास….’ मैंने बेसब्रे होके उसके कानों में हलके से पूछा.
” बहोत जल्द…कल…अभी मेरी पांच दिन की छुट्टी चल रही है..कल आखिरी दिन है…” और वो ग्लास लेके बाहर चली गयी.
” गंगा जी तुम्हारा भला करें गंगा जी…” चन्दा भाभी ने अगली गारी शुरू कर दी थी..
गंगा जी तुम्हारा भला करें गंगा जी…
अरे तुम्हरी बहनी की बुरिया पोखरवा जैसी इनरवा जैसी
ओहमें ९०० गुंडे कूदा करें मजा लूटा करें ,
बुर चोदा करें गंगा जी…
आरे गुड्डी की बुरिया पतैलिया जैसी भगोनावा जैसी….
९ मन चावल पका करे ….”
और एक के बाद एक नान स्टाप ….
आनंद साल्ला पूछे अपनी बहना से अपनी गुड्डी से…
बहिनी तुम्हारी बिलिया में , क्या क्या समाय,
अरे भैया तुम समाओ भाभी के सब भैया समाया
बनारस के सब यार समाय
हाथी जाय घोड़ा जाय…ऊंट बिचारा गोता खाय..हमारी बुरिया में ..
सब एक से बढ़ कर एक …
बिछी काट गयी सब के तो काटे अरिया अरिया
अरे गुड्डी छिनार के काटे बुरिया में, दौड़ा हो हमारे नंदोई साल्ले
दौड़ा आन्नद साल्ले मरहम लग्गावा भोसडिया में
और..
हमारे अंगना में चली आनंद की बहिनी , अरे गुड्डी रानी
गिरी पड़ीं बिछलाईं जी , अरे उनकी भोंसड़ी में घुस गए लकडिया जी
अअरे लकड़ी निकालें चलें आनंद भैया अरे उनके गाड़ियों में घुस गई लकडिया जी…
मैं खांना ख़तम कर कर चुका था लेकिन मुझे कुछ अलग सा लगा रहा था…एक दम एक मस्ती सी छाई थी और मैंने खाया भी कितना ..तब तक गुड्डी आई मैंने उससे पुछा.
” हे सच बतलाना खाने में कुछ था क्या…गुझिया में… मुझे कैसे लगा रहा है…”
वो हंसने लगी कस के, ” क्यों कैसा लग रहा है…”
” बस मस्ती छा रही है. मन करता है की…तुम पास आओ तो बताऊँ…था न कुछ गुझिया मैं ..”
” ना बाबा ना तुमसे तो दूर ही रहूंगी …और गुझिया मैंने थोड़ी बनाई थी आपकी प्यारी चंदा भाभी ने बनाइ थी उन्ही से पूछिए ना…मैंने तो सिर्फ दिया था…सच
कहिये तो इत्ती देर से जो आप अपनी बहाना का हाल सुन रहे थे इसलिए मस्ती छा रही है …”
और तब तक चन्दा भाभी आ गयीं एक प्लेट में चावल ले के….
” ये कह रहें है की गुझिया में कुछ था क्या…” गुड्डी ने मुड के चंदा भाभी से पूछा..
” मुझे क्या मालूम…मुस्करा के वो बोलीं. ” खाया इन्होने खिलाया तुमने …क्यों कैसा लग रहा है…”
” एकदम मस्ती सी लग रही है कोई कंट्रोल नहीं लगता है पता नहीं क्या कर बैठूंगा…और मैंने खाया भी कितना इसलिए जरूर गुझिया में…” मैं मुस्करा के बोला.
” साफ साफ क्यों नहीं कहते…अरे मान लिया रही भी हो ..तो होली है ससुराल में आए हो…साल्ली सलहज…यहाँ नहीं नशा होगा तो कहाँ होगा. ये तो कंट्रोल के बाहर होने का मौका ही है…” और वो झुक के चावल देने लगीं.
उनका आँचल गिर गया…पता नहीं जानबूझ के या अनजाने में..और उनके लो कट लाल ब्लाउज से दोनों गदराये, गोरे गुद्दाज उभार साफ दिखने लगे.
मेरी नीचे की सांस नीचे…उपर की उपर .
लेकिन बड़ी मुश्किल से मैं बोला नहीं भाभी नहीं ..
” क्या नहीं नहीं बोल रहे हो लौंडियों की तरह…तेरा तो सच में पैंट खोल के चेक करना पड़ेगा. अरे अभी वो दे रही थी तो लेते गए लेते गए और अब मैं दे रही हूँ तो…”
गुड्डी खड़ी मुस्करा रही थी. ताबा तक नीचे से उसकी मम्मी की आवाज आई और वो नीचे चली गयी… हे सच बतलाना खाने में कुछ था क्या…गुझिया में… मुझे कैसे लगा रहा है…”
वो हंसने लगी कस के, ” क्यों कैसा लग रहा है…”
” बस मस्ती छा रही है. मन करता है की…तुम पास आओ तो बताऊँ…था न कुछ गुझिया मैं ..”
” ना बाबा ना तुमसे तो दूर ही रहूंगी …और गुझिया मैंने थोड़ी बनाई थी आपकी प्यारी चंदा भाभी ने बनाइ थी उन्ही से पूछिए ना…मैंने तो सिर्फ दिया था…सच
कहिये तो इत्ती देर से जो आप अपनी बहना का हाल सुन रहे थे इसलिए मस्ती छा रही है …”
और तब तक चन्दा भाभी आ गयीं एक प्लेट में चावल ले के….
” ये कह रहें है की गुझिया में कुछ था क्या…” गुड्डी ने मुड के चंदा भाभी से पूछा..
” मुझे क्या मालूम…मुस्करा के वो बोलीं. ” खाया इन्होने खिलाया तुमने …क्यों कैसा लग रहा है…”
” एकदम मस्ती सी लग रही है कोई कंट्रोल नहीं लगता है पता नहीं क्या कर बैठूंगा…और मैंने खाया भी कितना… इसलिए जरूर गुझिया में…” मैं मुस्करा के बोला.
” साफ साफ क्यों नहीं कहते…अरे मान लिया रही भी हो ..तो… होली है ससुराल में आए हो…साल्ली सलहज…यहाँ नहीं नशा होगा तो कहाँ होगा. ये तो कंट्रोल के बाहर होने का मौका ही है…” और वो झुक के चावल देने लगीं.
उनका आँचल गिर गया…पता नहीं जानबूझ के या अनजाने में..और उनके लो कट लाल ब्लाउज से दोनों गदराये, गोरे गुद्दाज उभार साफ दिखने लगे.
मेरी नीचे की सांस नीचे…उपर की उपर .
लेकिन बड़ी मुश्किल से मैं बोला नहीं भाभी नहीं ..
” क्या नहीं नहीं बोल रहे हो लौंडियों की तरह…तेरा तो सच में पैंट खोल के चेक करना पड़ेगा. अरे अभी वो दे रही थी तो लेते गए लेते गए और अब मैं दे रही हूँ तो…”
गुड्डी खड़ी मुस्करा रही थी. तब तक नीचे से उसकी मम्मी की आवाज आई और वो नीचे चली गयी…
चन्दा भाभी उसी तरह मुस्करा रही थीं. उन्होंने आँचल ठीक नहीं किया.
” क्या देख रहे हो…” मुस्करा के वो बोलीं.
” नहीं…हाँ … कुछ नहीं…. भाभी.” मैं कुछ घबडा के शरमा के सर नीचे झुका के बोला… फिर हिम्मत कर के थूक घोंटते हुए …मैंने कहा…
” भाभी ….देखने की चीज़ हो तो आदमी देखेगा ही.”
” अच्छा चलो तुम्हारे बोल तो फूटे…लेकिन क्या सिर्फ देखने की चीज है …” ये कहते हुए उन्होंने अपना आँचल ठीक कर लिया. लेकिन अब तो ये और कातिल हो गया था. एक उभार साफ साडी से बाहर दिख रहा था और एक दम टाईट ब्लाउज खूब लो कटा हुआ…
मेरा वो तनतना गया था. तम्बू पूरी तरह तन गया था. किसी तरह मैं दोनों पैरों को सिकोड़ के उसे छुपाने की कोशिश कर रहा था.
लेकिन चन्दा भाभी ना…वो आके ठीक मेरे बगल में बैठ गयीं. एक उंगली से मेरे गालों को छूते हुए वो बोलीं…
” हाँ तो तुम क्या कह रहे थे..देखने की चीज है या …कुछ और भी…देखूं तुम्हारी छिनार मायके वालियों ने क्या सिखाया है…” तब तक मैंने देखा की उनकी आँखे मेरे तम्बू पे गडी हैं.
कुछ गुझिया का असर कुछ गालियों का …हिम्मत कर के मैं बोल ही गया…
” नहीं भाभी …मन तो बहूत कुछ करने का होता है है…अब ऐसी हो…तो लालच लगेगा है ना…” अब मैं भी उनके रसीले जोबन को खुल के देख रहा था.

” सिर्फ ललचाते रह जाओगे…” अब वो खुल के हंस के बोलीं. ” देवर जी ज़रा हिम्मत करो…ससुराल में हो हिम्मत करो…ललचाते क्यों हों…मांग लो खुल के …बल्कि ले लो,,,एक दम अनाडी हो.” और फिर जैसे अपने से बोल रही हों..एक रात मेरी पकड़ में आ जाओ..ना…तो अनाड़ी से पूरा खिलाड़ी बना दूँगी. और ये कहते हुए उन्होंने चावल की पूरी प्लेट मेरी थाली में उड़ेल दी.
” अरे नहीं भाभी मैं इत्ता नहीं ले पाऊंगा….” मैं घबडा के बोला.
“झूठे देख के तो लगता है की…” उनकी निगाहें साफ साफ मेरे ‘तम्बू’ पे थीं. फिर मुस्करा के बोलीं,
” पहली बार ये हो रहा है की मैं दे रही हूँ और कोई लेने से मना कर रहा है…”
” नहीं ये बात नहीं है ज़रा भी जगह नहीं हैं…”.
वो जाने के लिए उठ गयी थीं लेकिन मुड़ीं और बोलीं,
” अच्छा जी …कोई लड़की बोलेगी और नहीं अब बस तो क्या मान जाओगे..पूरा खाना है…एक एक दाना…और ऊपर के छेद से ना जाए ना तो मैं हूँ ना…पीछे वाले छेद से डाल दूँगी.”

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