Holi me chudai part 6

  कभी हलके से बाईट कर लेता…और कभी चूस लेता ..भाभी ने पहले तो एक हाथ से मेरा सर पकड़ रखा था लेकिन वो हाथ एक बार फिर मेरे टिट्स पे अबकी तो वो प...


 कभी हलके से बाईट कर लेता…और कभी चूस लेता ..भाभी ने पहले तो एक हाथ से मेरा सर पकड़ रखा था लेकिन वो हाथ एक बार फिर मेरे टिट्स पे अबकी तो वो पहले से भी ज्यादा जोर से वहां चिकोटी काट रही थीं, उसे नोच रही थीं.दूसरे हाथ की बदमाश उंगलिया..मेरे लंड के बेस पे …हलके हलके सहला रही थीं. वो एकदम तन्नाया हुआ, खडा था जोश में पागल…बस घुसने को बेताब. अब चन्दा भाभी के होंठ खुल गए थे तो फिर तो वो ..एकदम…जोश में…क्या क्या नहीं बोल रही थीं.

” साल्ले, चूस कस कस के…बहन चोद…तेरी सारी बहनों की फुद्दी मारून , गली के कुत्तों से चुदवाऊंउन्ही की चूंची चूस चूस के ट्रेन हुआ है ना..गांडू साले “चंदा भाभी की गालियाँ भी इत्ती मस्त थीं. साथ में इतने जोर से मेरे मुंह में अपनी बड़ी बाद चूंची घुसेड रही थी जैसे कोई झिझकती शर्माती
मना करती दुल्हन के मुंह में..जबरदस्ती पहली बार लौंडा पेले…मेरा मुझ फटा जा रहा था लेकिन मैं जोर जोर से चूस रहा थ भाभी के हाथ ने अब कस के मेरा
लंड पकड़ लिया था और वो हलके हलके मुठिया रही थीं. लेकिन एक उंगली अभी भी मेरी गांड की दरार पे रगड़ खा रही थी. और अब उनकी गालियाँ भी,
” साले कहता है की तेरी …कल देखना तेरी वो हालत करुँगी ना…गांड से भोंसडा बना दूंगी…जो लंड लेने में चार चार बच्चों की मां को पसीना छूटता होगा ना …वो भी तू हंस हंस के घोंटेगा…ऐसे चींटे काटेंगे ना तेरी गांड में ..खुद चियारता फिरेगा…”.
पता नहीं भाभी की गालियों का असर था…या उनके हाथ का या मेरे मुंह में घुल रहे पलंग तोड़ पान का…बस मेरा मन कर रहा था की बस…भाभी को अब पटक के चोद दूं..भाभी ने अपनी एक चूंची निकाल के दूसरी मेरे मुंह में डाल दी. मैंने भी कस के उनका सर पकड़ के अपनी ओर खिंचा और कस कस के पहले तो निपल चूसता रहा फिर हलके हलके दांतउनके सीने पे गडा दिए.
” उई क्या करता है तेरे उस माल की चूंची नहीं है …निशान पड़ जाएगा.” वो चीखीं.
जवाब में कस के मैंने उसी जगह पे दांत और जोर से गडा दिए. दूसरी चूंची अब कस के मैं रगड़ मसल रहा था. दांत गड़ाने के साथ साथ मैंने उनके निपल को भी का के पिंच कर दिया.
वो फिर चीखीं , लेकिन वो चीख कम थी सिसकी ज्यादा थी.
मैं रुका नहीं और कस कस के उनके निपल को पिंच करता रहा चूसता रहा.
भाभी अब छटपटा रही थीं, सिसक रही थीं पलंग पे अपने भारी भारी चूतड रगड़ रही थीं.
उन्होंने मेरे मुंह से अपन चूंची निकाल ली और पलंग पे निढाल पड़ गयीं. बिना मौक़ा गवाएं मैं भी उनके ऊपर चढ़ गया और उनको कस के किस ले के बोला ,
” भाभी अबकी मेरा नंबर.. अब तो मैं उत्ता अनाड़ी भी नहीं रहा..” वो मुस्कार्यीं और मेरे कान में फुसफुसा के कहा , ” लाला, तुम अनाड़ी भले ना हो लेकिन सीधे बहोत हो…अरे अगर तुम ऐसे किसी लौंडिया से पूछोगे तो क्या हाँकहेगी ..अरे बस चढ़ जाना चाइये उसके ऊपर और जब तक वो सोचे समझे अपना खूंटा ठूंस दो उसके अन्दर…” और फिर कुछ रुक के बोली…” चलो देवर हो फागुन है…तुम्हारा हक़ बनता है लेकिन…तुम अपनी ‘ उसको ‘ समझ के करना…मैं शरमाउँगी भी मना भी करुँगी..अगर अज तुम ये बाजी जीत गए तो फिर कभी नहीं हारोगे और वो पहले झाड़ने वाली बात याद है ना…”
” हाँ याद है, कसी भूल सकता हूँ…अगर मैं पहले झडा तो आप मेरी गांड मार लेंगी…” हंस के मैं बोला.
” वो तो मैं मारूंगी ही…सुसराल आये हो तो होली मैं ऐसे कैसे सूखे सूखे जा सकते हो…ये होली तो तुम्हे याद रहेगी.” ताबा तक मैं उनके ऊपर चढ़ चुका था और मेरे होंठोने उनके होंठ सील कर दिए थे. . बात बंद काम शुरू.
अबकी मेरी जीभ उनके मुंह के अन्दर थी.
वो अपना सर इधर उधर हिला रही थीं जैसे मेरे चुम्बन से बचने की कोशिश कर रही हों. मैं समझ गया वो अब उस किशोरी की तरह हैं जिसे मुझे कल पहली बार यौवन सुख देना है. तो वो कुछ तो शर्मायेंगी, झिझकेंगी और मेरा काम होगा उसे पटाना, तैयार करना और वो लाख ना न करे उसे कच्ची कली से फूल बना देना.
मैंने कस के उनके मुंह में जीभ ठेल रखी थी. कुछ देर की ना नुकुर के बाद ..उनकी जीभ ने भी रिस्पोंड करना शुरू कर दिया, वो अब हलके से मेरे जोभ के साथ खिलवाड़ कर रही थी. उनके रसीले होंठ भी अब मेरे होंठों को धीरे धीरे कभी चूम लेती. लेकिन मैं ऐसे छोड़ने वाला थोड़े ही था. मेरे हाथ जो अब तक उनके सर को पकडे थे अब उनके उभारों की और बढे और बजाय कस के रगड़ने मसलने के एक हाथ से मैंने उनके ज़वानी के फूलों को हलके से सहलाना शुरू किया.
जैसे कोई भौंरा कभी फूल पे बैठे तो कभी हट जाय मेरी उंगलियाँ भी यही कर रही थीं. दूसरे हाथ की उनगलिया उनके जोबन के बेस पे पहले बहोत हलके से सहलाती रहीं फिर जैसे कोई शिखर पे सम्हाल सम्हाल के चढ़े वो उनके निपल तक बढ़ गयीं. उनका पूरा शरीर उत्तेजबा से गनगना रहा था.
” नहीं नहीं …छोड़ो ना …फिर कभी आज नहीमैंने लेकिन गालों को छोड़ा नहीं. हलके से उसी जगह पे फिर किस किया और उनके सपनों से लड़ी पलकों की ओर बढ़ चला. ं…हो तो गया..प्लीज .” वो बुद बुदा रही थीं. लेकिन मैं नहीं सुनाने वाला था. मेरे होंठ अब उनके होंठों को छोड़ के रसीले गालों का मजा ले रहे थे.मैंने पहले तो हलके से किस किया फिर धीरे से …बहोत धीरे
से काट लिया.

” नहीं नहीं…प्लीज कोई देख लेगा…निशान पड़ जाएगा…मेरी सहेलियां क्या कहेंगी…वैसे ही सब इत्ता चिढाती हैं…छोड़ो ना..हो तो गया…” उनकी आवाज में उस किशोरी की घबराहट, डर लेकिन इच्छा भी थी. मैंने लेकिन गालों को छोड़ा नहीं. हलके से उसी जगह पे फिर किस किया और उनके सपनों से लदी पलकों की ओर बढ़ चला.
एक बार मैंने जैसे कोई सुबह की हवा किसी कली को हलके से छेड़े ..बस उसी तरह बड़ी बड़ी आँखों को से छु भर दिया…और फिर एक जोर दार चुमबन से उन शरमाती लजाती पलकों को बंद कर दिया जिससे मैं अब मन भर उसकी देह का रस लूट सकूँ.एक बार मैंने जैसे कोई सुबह की हवा किसी कली को हलके से छेड़े ..बस उसी तरह से बड़ी बड़ी आँखों को छु भर दिया…और फिर एक जोर दार चुमबन से उन शरमाती लजाती पलकों को बंद कर दिया जिससे मैं अब मन भर उसकी देह का रस लूट सकूँ.म मेरे होंठ उन के कानों की और पहुँच गए थे और मेरे जीभ का कोना उन के कान में सुरसुरी कर रहा था जैसे ना जाने कब की प्रेम कहानियां सुना रहा हो. मेरे होंठों ने उन के इअर लोबस पे एक हलकी सी किस्सी ली और वो सिहर सी गयीं. उनके दोनों गदराये रस भरे जोबन मेरे हाथों की गिरफ्त में थे. एक हाथ उसे बस हलके हलके सहला के रस लूट रहा था और दूसरा बस धीरे से दबा रहा था. मैं भी बस उन्हें अपनी प्यारी सोन चिरैया ही मान रहा था जिसका जोबन सुख मैं पहली बार खुल के लूट रहा होऊं. एक हाथ की उंगलियाँ टहले टहलते धीरे धीरे उनके यवन शिखरों की ओर बढ़ रही थीं ओर बस निपल के पास पहुँच के ठिठक के रुक गयीं. मेरे होंठों ने उनके कानों को एक बार फिर से किस किया
ओर हलके से पुछा की उन उभारों का रस चूस सकता हूँ.
वो बस कुछ बुदबुदा सी उठीं ओर मैंने इसे इजाजत मान लिया. एक निपल मेरे उँगलियों के बीच में था. मैं उसे हलके दबा रहा था, घुमा रहा था. जोबन दोनों मारे जोश के पत्थर हो रहे थे. मेरे होंठ ने बस उनके उभार के निचले हिस्से पे एक छोटी सी किस्सी ली. पत्ते की तरह उनकी देह काँप गयीं लेकिन मैं रुका नहीं. मेरे होंठ हलके चुम्बन के पग धरते निपल के किनारे तक पहुँच गए. जीभ से मैंने बस निपल के बेस को छुआ. वो उत्तेजना से एकदम कड़ा हो गया था. मन जान रहा था की वो सोच रही थीं की अब मैं उसे गप्प कर लूंगा. लेकिन मुझे भी तडपाना आता था. जीभ की टिप से मैं बस उसे छु रहा था…छेड़ रहा था.

” छोड़ो ना …प्लीज…किया कैसा हो रहा है…क्या करतेहो…तुम बहोत बदमाश हो…नहीं …न न…बस वहां नहीं….” वो सिसक रही थीं उनकी देह इधर उधर हो रही थी बिलकुल किसी किशोरी की तरह.
मेर भी आँखे अपने आप मुंद चली थीं ओर मुझे भी लग रहा था की मेरे साथ चन्दा भाभी नहीं वो मेरे दिल की चोर, वो किशोरी सारंग नयनी हैमैंने जीभ से एक बार इसके उत्तेजित निपल को ऊपर से नीचे तक लिक किया ओर फिर उसके कानों के पास होंठ लगा के हलके से बोला..
” हे सुन ..मेरा मन कर रहा है…तुम्हारे इन जवानी के फूलों का रस लेने का….मेरे होंठ बहोत प्यासे हैं…तुम्हारे ये रस कूप…तुम्हारे ये …”
” ले तो रहे हो…ओर कया…” हलके से वो बुद्बुदायीं…
” नहीं मेरा मन कर रहा है ओर कस के इन उभारों को कस कस के…
मैंने बोला.
साथ साथ में अब कस के मेरे हाथ उस के सिने को दबा रहे थे. वो शुरू की झिझक जैसे ख़तम हो जाए. एक हाथ अब कस के उस के निपल को फ्लिक कर रहा था…

” ले तो रहे हो…ओर कया…” हलके से वो बुद्बुदायीं…
” नहीं मेरा मन कर रहा है ओर कस के इन उभारों को कस कस के…
मैंने बोला.
साथ साथ में अब कस के मेरे हाथ उस के सिने को दबा रहे थे. वो शुरू की झिझक जैसे ख़तम हो जाए. एक हाथ अब कस के उस के निपल को फ्लिक कर रहा था…
वो चुप रही. लेकिन उसके देह से लग रहा था की उसे भी मजा मिल रहा है…
” हे प्लीज किस कर लूं तुम्हारे इन रसीले उभारों पे बोलो ना. ..”
चन्दा भाभी मेरे कान में फुसफुसायीं, लाला अरे अब उससे चूंची बोलना शुरू करो नहीं तो वो भी शरमाती ही रह जायेगी….मैं समझ गया.
मैंने दोनों हाथों से अब कस क़स के उसके जोबन को मसलना शुरू कर दिया ओर फिर उसके कान में बोला…” सुनो ना…एक बार तुम्हारे रसीले जोबन को किस कर लूं…बस एक बार इन…इन ..चून्चियों का रस पान करा दो ना…”
अबकी उसने जोर से रिस्पाण्ड किया…
” क्या बोलते हो…कैसे बोलते हो…प्लीज…ऐसे नहीं …मुझे शर्म आती है…”
मुझे मेरा सिग्नल मिल गया था. अब मेरे होंठ सीधे उसके निपल पे थे. पहले मैंने एक हलके से किस किया फिर उसे मुंह में भर के हलके हलके चूसने लगा.
वो सिसक रही थी उसके हिप्स पलंग पे रगड़ रहे थे.
दूसरा निपल मेरे उँगलियों के बीच था.
मैंने हाथ को नीचे उसकी जाँघों की ओर किया. वो दोनों जांघे कस के सिकोड़े हुए थी. हाथ से वो मेरे जांघ पे रखे हाथ को हटाने की भी कोशिश कर रही थीं. लेकिन मेरी उंगलिया भी कम नहीं थीं..घुटने से ऊपर एक दम जाँघों के ऊपर तक …हलके हलके बार बार….
भाभी ने दूसरे हाथ से मुझे नीचे छुआ तो मैं इशारा समझ गया. मेरे तनाया लिंग भी बार बार उनकी जाँघों से रगड़ रहा था. मैंने उनके दायें हाथ में उसे पकड़ा दिया. उन्होंने हाथ हटा लिया जैसे कोई अंगारा छु लिया हो…
लेकिन मैंने मजबूती से फिर अपने अपने हाथ से उनके हाथ को पकड़ के रखा ओर कस के मुठी बंधवा दी. अबकी उन्होंने नहीं छोड़ा. थोड़े देर में ही उनकी उनग्लियाँ उसे हलके हलके दबाने लगीं. मेरा दूसरा हाथ उनके जांघ को प्यार से सहला रहा था. एक बार वो ऊपर आया तो सीधे मैंने उनकी योनी गुफा के पास हलके से दबा दिया. जांघे जो कस के सिकुड़ी हुयी थीं अब हलके से खुलीं. मैं तो इसी मौके के इंतज़ार में था. मैंने झट से अपना हाथ अन्दर घुसा दिया. ओर अबकी जो जांघे सिकुड़ी तो मेरा हथेली सीधे योनी के ऊपर.
वो अब अपने दोनों हाथों से मेरा हाथ वहां से हटाने की कोशिश में थी लेकिन ये कहाँ होने वाला था.
” हे छोड़ो ना…वहां से हाथ हटाओ…प्लीज…बात मानो..वहां नहीं …” वो बोल रही थीं.
” कहाँ से …हाथ हटाऊं…साफ साफ बोलो ना…’ मैं छेड़ रहा था साथ में अब योनी के ऊपर का हाथ हलके हलके उसे दबाने लगा था.
जाँघों की पकड़ अब हलकी हो रही थी.

और मेरे हाथ का दबाव मज़बूत.
हाथ अब नीचे दबाने के साथ हल्के हल्के सहलाने भी लगा था, और वो हालाँकि हल्की गीली हो रही थी. उसका असर पूरे देह पे दिख रहा था. देह हल्के हल्के काँप रही थी.आँखें बंद थी. रह रह के वो सिस्किया भर रही थी. मेरी भी आँखें मुंदी हुयी थीं. मुझे बस ये लग रहा था की ये मेरी और ‘उसकी’ मिलन की पहली रात है. मेरे होंठ अब कस कस के उसके निपल को चूस रहे थे. मैं जैसे किसी बच्चे को मिठाई मिल जाए बस उस तरह से कभी किस करता कभी चाट लेता कभी चूस लेता. एक हाथ निपल को फ्लिक कर रहा था, पुल कर रहा था और दूसरा ..उसकी योनी को अब खुल के रगड़ रहा था, और इस तिहरे हमले का जो असर होना था वही हुआ. जांघो की पकड़ अब एक ढीली हो गयी थी. देह ने पूरी तरह सरेंडर कर दिया था. और मौके का फायदा उठा के मैंने एक घुटना उसकी टांगो के बीच घुसेड दिया. उसे शायद इस बात का अहसास हो गया था इसलिए फिर से अपनी टाँगों को सिकोड़ने की कोशिश की …लेकिन अब बहोत देर हो चुकी थी. सेंध लग चुकी थी.
मेरे हाथों ने जोर लगा कर अब एक टांग को और थोडा फैला दिया और अब मेरे दोनों पैर उसके पैरों के बीच घुस चुके थे. मैंने धीरे धीरे पैर फैलाए और अब दोनों जांघे अपने आप खुल गयीं.
मेरा एक हाथ वापस प्रेम द्वार पे पहुँच गया था. लेकिन अब सीधे उसकी काम सुरंग के बाहर, दोनों पुत्तियों पे मेरा अंगूठा और तर्जनी थी. मैंने पहले उसे हलके से दबाया और फिर धीरे धीरे रगड़ने लगा. वो अब अच्छी तरह गीली हो रही थीं. मैंने एक उंगली अब लिटा के दोनों पुतीयों के बीच डाल दी, और साथ साथ रगड़ने लगा. मेरा अंगूठा और तरजनी बाहर से और बीच की उंगली अन्दर रगड़ घिस कर रही थी.
सिसकियों की आवाजें अब तेज हो गयी थीं.
नितम्ब भी अपने आप ऊपर नीचे होने लगे थे.
मेरे होंठ अब बारे बारी से दोनों निपल्स को चूसते थे कभी फ्लिक कर लेते थे. साथ में जुबान भी खड़े पूरी तरह उत्तेजित इंच भर लम्बे निपल्स को निचे से ऊपर तक तेजी से चाट रही थी. जितनी तेजी से नीचे योनी के अन्दर औअर बाहर मेरी उंगलियाँ रगड़ती उसी तेजी से से जीभ निपल लिक करती.
भाभी के होंठ सूख रहे थे.
जोबन पत्थर हो गए थे.
योनी की पुत्तियाँ काँप रही थीं और वो अच्छी तरह गीली हो गयी

मेरे होंठो ने जोबन को छोड़ के नीचे का रास्ता पकड़ा. पहले उनके कदली के पत्ते ऐसे चिकने पेट पे चुम्बनों की बारिश की और फिर जीभ की टिप उनकी गहरी नाभि में गोल गोल चक्कर लगाने लगी.
साथ ही मेरी बीच वाली उंगली अब पहली बार उनकी योनी में घुसी. मैंने बस हलके से दबाया, बिना घुसेडने की कोशिश किये. चन्दा भाभी ने इत्ती कस के सिकोड़ रखा था की किसी किशोरी कच्ची कली की ही अनछुई प्रेम गुफा लग रही थी. थोड़ी देर में टिप बल्कि टिप का भी आधा घुस पाया. वह इत्ती गीली हो रही थीं की अब मुझे रोकना उनके बस में ही नहीं था. पहले मैंने हलके हलके अन्दर बाहर किया और फिर गोल गोल घुमाने लगा. भाभी ने मुझा समझा दिया था की मजे की सारी जगह यहीं होती है. उंगली के साथ अंगूठे ने अब ऊपर कुछ ढूँढना शुरू किया और जैसे ही उसने
क्लिट को छुआ… भाभी को लगा की कोई करेंट लग गया हो और उंहोने झटके से अपने भारी भारी ३८ साइज वाले चूतड ऊपर उछाले…
ओह्ह ओह्ह्ह्ह …. उनके मुंह से आवाज निकली.
साथ ही मेरी उंगली अब एक पोर से ज्यादा अन्दर घुस गयी.
होंठ अब नाभि से बाहर निकल के उनके काले घुंघराले केसर क्यारी तक आ पहुंचे थे. वो सोच रही थीं की शायद अब मैं ‘नीचे’ चुम्बन लूं. लेकिन मैं भी …उन्होंने मुझे बहोत सताया था….
उन्होंने उसके चारो ओर किस किया और नीचे उतर आये, जांघे के एकदम उपरी भाग पे.
कभी मैं किस करता कभी लिक करता.
साथ में मेरी मझली उंगली अब कभी तेजी से अन्दर होती, कभी बाहर, कभी गोल गोल रगड़ती. और अंगूठा भी अब वो क्लिट को प्रेस नहीं कर रहा था बल्की कभी फ्लिक करता कभी पुल करता.
मस्ती के मारे भाभी की हालत खाराब थी.
एक पला के लिए मैंने उन्हें छोड़ा और झट से एक मोटी बड़ी तकिया उनके चूतडों के नीचे लगाई और कस के दोनों हाथों से उनकी जांघे पूरी तरह फैला दीं.
और अब मेरे प्यासे होंठ सीधे उनकी योनी पे थे. पहले तो मेरे होंठ उनके निचले होंठों से मिले.
हलकी सी किस …फिर एक जोर दार किस और थोड़ी ही देर में मेरे होंठ कस कस के चूम रहे थे चाट रहे थे.. योनी और पिछवाड़े वाले छेद के बीच की जगह से शुरू कर के एक दम ऊपर तक कभी छोटे छोटे और कभी कस के चुम्बन …फिर थोड़ी देर में मेरी जुबान भी चालू हो गयी. उसे पहली बार बार चूत चाटने का स्वाद मिला था..क्या मस्त स्वाद था..अन्दर से खारे कसैले अमृत का स्वाद …
लालची जीभ रस चाटते चाटते अमृत कूप में घुस गयी.
उह्ह्ह्ह आहाह्ह्हओह्ह ओह्ह्ह्ह …नहीं .यीई ई ई इ ..भाभी की सिसकियों, आवाजों से अब कमरा गूँज रहा था. लेकिन मेरी जीभ किसी लिंग से कम नहीं थी.
वो कभी अन्दर घुसती कभी बाहर आती कभी गोल गोल ..घूमती साथ साथ मेरे होंठ कस कस के उनकी चूत को चूस रहे थे जैसे कोई रसीले आम की फांक को चूसे और रस से उसका चेहरा तर बतर हो जाए लेकिन वो बेपरवाह मजे लेता रहे चूसता रहे.
.
तभी मुझे भाभी की वार्निंग याद आई…अगर तुम पहले झड़े तो…..’ वो ‘ भी नहीं मिलेगी…ये मौक़ा अच्छा था. मेरे अंगूठे और तरजनी ने एक साथ उनकी क्लिट को धर दबोचा. मस्ती के मारे वो कड़ी हो रही थी. उसका मटर के दाने ऐसा मुंह खुल गया था. कभी मैं उसे गोल गोल घुमाता, कभी दबा देता, जुबान होंठों और उंगली के इस तिहरे हमले ने….भाभी की आँखे मुंदी हुयी थीं …वो बार बार चूतड उचका रही थीं. ४-५ मिनट मैं लगातार और बार बार लगता भाभी अब झड़ी तब झड़ी…लेकिन तभी मुझे कुछ याद आया.
मेरा तन्नाया जोश में पागल मूसल अन्दर घुसाने के लिए बेताब था. वो बार बार भाभी की जाँघों से टकरा था. भाभी तो आज ‘ उसकी’ तरह हैं और मुझे…तो बिना चिकनाहट के एक कच्ची कली..बगल में सरसों के तेल की शीशी रखी थी जिससे अभी थोड़ी देर पहले भाभी ने …मैंने हथेली में तेल लेके अच्छी तारः पहले सुपाडे पे फिर पूरे लंड पे मला. वो चिकना कड़ा चमक रहा था.
भाभी सोच रही थीं की अब मैं …’उसे’ लगाउंगा…लेकीन मैं भी..
मैंने एक बार फिर कस के चूत चूसना शुरू किया. मेरे दोनों होठों के बीच उनके निचले होंठ थे. होंठ चूस रहे थे और जुबान बार बार अन्दर बाहर हो रही थी. साथ में मेरे उंगलियाँ बिना रुके उनके क्लिट को…थोड़ी देर में भाभी के नितम्ब जोरों से ऊपर नीचे होने लगे वो फिर झड़ने के कगार पे पहुँच गयी थीं लेकिन मैं रुक गया. मैंने अपने उत्थित लिंग को उनकी चूत के मुंहाने पे, क्लिट पे बार बार रगडा…वो खुद अपनी टाँगे फैला रही थीं ..जैसे कह रही हों …घुसाते क्यों नहीं अब मत तड़पाओ…लेकिन थोड़ी देर में फिर मैं ने उसे हटा लिया. और अबकी जो मेरे होंठों ने चूत रस का पान करना शुरू किया तो …बिना रुके…लेकिन थोड़ी ही देर में मेरे होंठ पहली बार उंके क्लिट पे थे. फले तो मैंने सिर्फ जीभ की टिप वहां पे लगाई फिर हलके होंठों के बीच लेके चुसना शुरू किया.
भाभी जैसे पागल हो गयी थीं.
ओह्ह्ह अहं अह्ह्ह्ह्ह अहं अह्ह्ह्ह्ह III से चूतड उठातीं मुझे अपनी और खींचती …अबकी वो कगार पे आई तो मैं रुका नहीं. मैंने हलके से उनके क्लिट पे बाईट कर ली फिर तो….
मैंने उनकी दोनों टाँगे अपने कंधे पे रख ली. जांघे पूरी तरह फैली हुयीं…दोनों अंगूठों से मैंने उनके योनी के छेद को फैला के अपने लिंग को सताया और फिर कमर पकड़ के एक जोरदार धक्का पूरी त्ताकत से…
उनकी चूत अबही भी एक कच्ची कली की तरह कसी थी उनहोने ऐसे सिकोड़ रखा था …लेकिन अब वो इत्ती गीली थी और जैसे ही मेरा लिंग अन्दर घुसा ..भाभी ने झड़ना शुरु कर दिया….

मैंने उनकी दोनों टाँगे अपने कंधे पे रख ली. जांघे पूरी तरह फैली हुयीं…दोनों अंगूठों से मैंने उनके योनी के छेद को फैला के अपने लिंग को सताया और फिर कमर पकड़ के एक जोरदार धक्का पूरी त्ताकत से…
उनकी चूत अबही भी एक कच्ची कली की तरह कसी थी उनहोने ऐसे सिकोड़ रखा था …लेकिन अब वो इत्ती गीली थी और जैसे ही मेरा लिंग अन्दर घुसा ..भाभी ने झड़ना शुरु कर दिया….

लेकिन बिना रुके कमर पकड़ के मैंने दो तीन धक्के और लगाए…आधा से ज्यादा अब मेरा लंड उनकी चूत में था.
एक पल के लिए मैं रुक गया. उनका चेहरा एक दम फ्ल्श्ड लग रहा था. हलकी सी थकान ..लेकिन एक अजीब ख़ुशी …उंके निपल तन्नाये खड़े थे…
मैं एक पल को ठहरा.
मैंने हलके हलके चुम्बन उनके चेहरे पे…फिर होंठो पे…और जब तक मेरे होंठ उनके उरोजों तक पहुंचे ….
भाभी ने मुझे कस के अपनी बाहों में भींच लिया था. उनकी लम्बी टाँगे लता बन कर मेरी पीठ पे मुझे उनके अन्दर खिंच रही थीं.
लेकिन बस मैं हलके हलके निपल पे किस करता रहा.
उन्होंने अपनी आँखे खोल दिन और मुझे देख के मुस्करायीं.
मैं भी मुस्कराया और उसी के साथ उनके उरोजों को कस के पकड़ के मैंने पूरी ताकत से एक धक्का मारा,
उयीई ,,,उनके होंठों से सिसकारी निकल गयी.
मैं कस कस के जोबन मसल रहा था साथ में धक्क्के मार आरहा था. दो तीन धक्को में मेरा पूरा लंड अन्दर था. दो पल के लिए मैं रुका. फिर मैंने सूत सूत कर के उसे बाहर खींचा. सिर्फ सुपाडा जब अन्दर रह गया तो मैं रुक गया. मैं भाभी के चेहरे की ओर देख् रहा था. वो इत्ती खुश लग रही थी. कि बस…और फिर बाँध टूट गया. उन्होंने नीचे से कस कस के धक्के लगाने शुरू कर दिए. उनकी बाहो क्ा पाश और तगडा हो गया.
भाभी अब अपने रुप में आ गयी थी, और मेरी उस किशोरी सारंग नयनी के रुप से बाहर आ गयी थी. जैसा उनहोने सिखाया था उनकी पूरी देह …सब कुछ…हाथ नाखून, उंगलिया,उरोज जुबान और सबसे बढ़ कर उनकी मस्त गालिया..उनके लम्बे नाखून मेरी पीठ में चुभ रहे थे. वो कस कस के अपनी बड़ी बड़ी गदराई चून्चिया..मेरी छाती में रगड़ रही थीं. उनके बड़े बड़े नितम्ब खूब उचक उचक के मेरे हर धक्के का जवाब दे रहे थे.
” बतलाती हूँ साल्ले अब…ये कोई तुम्हारे मायके वाले माल की तरह कुवारी कली नहीं है…हचक हचक के चोदो ना…देवर जी..देखती हूँ कितनी ताकत है तुममें. बहन चोद…बहना के भंडुये ..”
जवाब में मैं भी..मैंने उनके पैर मोड़ के दुहरे कर दिए और लंड आलमोस्ट बहार निकाल लिया. फिर जांघे एकदम सटा के अपने पैरों के बीच दबा के जब हचक के एक बार में अपना मोटा ८ इंच का लंड पेला तो भाभी की चीख निकल गयी. वो एकदम रगदते घिसटते हुए अन्दर घुसा. लेकिन मैंने अपने पैरों का जोर कम नहीं किया. इनकी जांघे मेरे पैरों के बीच सिमटी हुयीं थीं.
” साल्ले बहन चोद तेरी सारी बहनों के बुर में गदहे का लंड…साले क्या तेरे मायकैवालियों की तरह भोंसडा है क्या जो ऐसे पेल रहे हो…” और उन्होंने भी कस के एक बार एक हाथ के नाखून मेरी पीठ में और दुसरे मेरी छाती पे सीधे मेरे टिट्स पे …उनकी बुर ने कस कस के मेरे लंड को अन्दर निचोडना शुरू कर दिया. मुझे लगा की मैं अब गया तब गया.
मैंने कहीं पढ़ा था की अगर ध्यान कहीं बटा दो तो झड़ना कुछ देर के लिए टल जाता है…और मैंने मन ही मन गिनती गिननी शुरू दी.
लेकिन भाभी भी नवल नागर थीं.
” हे देवर जी ये फाउल है. कल की छोकरियों के साथ ये चलेगा मेरे साथ नहीं…” और उनहोने कस के मेरा गाल काट लिया.
चलो भाभी आप भी ये फागुन याद करोगी और मैंने जोर जोर से लंड पूरा बाहर निकाल के धक्के मारने शुरू कर दिए. साथ में तिहरा हमला भी…मेरा एक हाथ उनके निपल के साथ खेल रहा था और दोसरा उनके क्लिट को कस कस के रगड़ मसल रहा था ….साथ में मेरे होंठ उनकी चून्चियों को निपल को कस कस के चूस रहे थे…
” हाँ ओह्ह ईईइ आह्ह मान गए अरे देवर जी…ओह्ह्ह बहोत दिन बाद …क्या करते हो…हां और जोर से करो…नहिन्न्न्नन्न्न्न निकला लो..लगता है..ओह्ह्हह्ह .”
कुछ देर बाद मैंने भाभी के दोनों हाथों को अपने एक हाथ से पकड़ के उनके सर के पास दबा दिया. जिस तरह से वो अपने नाखूनों से मेरे टिट्स को खरोंच रही थीं वो तो रुका. और अब जब मेरा लंड अन्दर घुसा तो पूरी देह का जोर देकर मैंने बिना आआगे पीछे किये उसे वहीँ दबाना शुरू किया. कभी मैं गोल गोल घुमा देता, जिससे भाभी की क्लिट मेरे लंड के बेस से खूब कस कस के रगड़ खा रही थी. होंठ कभी उनक एगालों कभी होंठो और कभी रसीली चून्चियों का रस लूट रहे थे.
ओह्ह्ह आह्ह्ह थोड़ी देर में भाभी फिर कगार पे पहुँच गयीं वो बार नीचे से अपने चूतड उठातीं, लेकिन मैं लंड पूरी तरह घुसाए हुए दबाये रहता.
लेकिन अब मुझसे भी नहीं रहा जा रहा था. एक बार फिर से मैंने उनकी गोरी लम्बी टांगों को अपने कंधे पे रखा और हचक हचक के…
भाभी भी कभी गोल गोल चूतड घुमातीं कभी जोर जोर से मेरे धक्के का जवाब देतीं तो कभी गाली से…साले हराम जादे…कहाँ से सिखा है…रंडियों के घर से हो…क्या….ओह्ह आह और जवाब में मैं कच कचा के कभी उनके होंठ कभी निपल काट लेता.
चन्दा भाभी ने झड़ना शुरू किया. लग रहा था कोई तूफान आ गया. हम दोनों के बदन एक दूसरे में गुथे हुए थे. सिर्फ सिसकियाँ सुनाई दे रही थीं.
साथ में मैं भी….भाभी की चूत भी…जैसे कोई ग्वाला गाय का थान दूहता है…बस उसी तरह कभी सिकुड़ती, कभी दबोचती…मेरे लंड को जैसे दुह रह थी और मैं गिर रहा था….पता नहीं कब तक…
बाहों में लिपटे लिपटे साइड में हो के हम वैसे ही सो गए. मेरा लिंग भाभी के अन्दर ही था…

ओह्ह्ह अहं अह्ह्ह्ह्ह अहं अह्ह्ह्ह्ह III से चूतड उठातीं मुझे अपनी और खींचती …अबकी वो कगार पे आई तो मैं रुका नहीं. मैंने हलके से उनके क्लिट पे बाईट कर ली फिर तो….
मैंने उनकी दोनों टाँगे अपने कंधे पे रख ली. जांघे पूरी तरह फैली हुयीं…दोनों अंगूठों से मैंने उनके योनी के छेद को फैला के अपने लिंग को सताया और फिर कमर पकड़ के एक जोरदार धक्का पूरी त्ताकत से…
उनकी चूत अबही भी एक कच्ची कली की तरह कसी थी उनहोने ऐसे सिकोड़ रखा था …लेकिन अब वो इत्ती गीली थी और जैसे ही मेरा लिंग अन्दर घुसा ..भाभी ने झड़ना शुरु कर दिया….

लेकिन बिना रुके कमर पकड़ के मैंने दो तीन धक्के और लगाए…आधा से ज्यादा अब मेरा लंड उनकी चूत में था.
एक पल के लिए मैं रुक गया. उनका चेहरा एक दम फ्ल्श्ड लग रहा था. हलकी सी थकान ..लेकिन एक अजीब ख़ुशी …उंके निपल तन्नाये खड़े थे…
मैं एक पल को ठहरा.
मैंने हलके हलके चुम्बन उनके चेहरे पे…फिर होंठो पे…और जब तक मेरे होंठ उनके उरोजों तक पहुंचे ….
भाभी ने मुझे कस के अपनी बाहों में भींच लिया था. उनकी लम्बी टाँगे लता बन कर मेरी पीठ पे मुझे उनके अन्दर खिंच रही थीं.
लेकिन बस मैं हलके हलके निपल पे किस करता रहा.
उन्होंने अपनी आँखे खोल दिन और मुझे देख के मुस्करायीं.
मैं भी मुस्कराया और उसी के साथ उनके उरोजों को कस के पकड़ के मैंने पूरी ताकत से एक धक्का मारा,
उयीई ,,,उनके होंठों से सिसकारी निकल गयी.
मैं कस कस के जोबन मसल रहा था साथ में धक्क्के मार आरहा था. दो तीन धक्को में मेरा पूरा लंड अन्दर था. दो पल के लिए मैं रुका. फिर मैंने सूत सूत कर के उसे बाहर खींचा. सिर्फ सुपाडा जब अन्दर रह गया तो मैं रुक गया.
मैं भाभी के चेहरे की ओर देख् रहा था. वो इत्ती खुश लग रही थी. कि बस…और फिर बाँध टूट गया. उन्होंने नीचे से कस कस के धक्के लगाने शुरू कर दिए. उनकी बाहो क्ा पाश और तगडा हो गया.
भाभी अब अपने रुप में आ गयी थी, और मेरी उस किशोरी सारंग नयनी के रुप से बाहर आ गयी थी. जैसा उनहोने सिखाया था उनकी पूरी देह …सब कुछ…हाथ नाखून, उंगलिया,उरोज जुबान और सबसे बढ़ कर उनकी मस्त गालिया..उनके लम्बे नाखून मेरी पीठ में चुभ रहे थे. वो कस कस के अपनी बड़ी बड़ी गदराई चून्चिया..मेरी छाती में रगड़ रही थीं. उनके बड़े बड़े नितम्ब खूब उचक उचक के मेरे हर धक्के का जवाब दे रहे थे.
” बतलाती हूँ साल्ले अब…ये कोई तुम्हारे मायके वाले माल की तरह कुवारी कली नहीं है…हचक हचक के चोदो ना…देवर जी..देखती हूँ कितनी ताकत है तुममें. बहन चोद…बहना के भंडुये ..”
जवाब में मैं भी..मैंने उनके पैर मोड़ के दुहरे कर दिए और लंड आलमोस्ट बहार निकाल लिया. फिर जांघे एकदम सटा के अपने पैरों के बीच दबा के जब हचक के एक बार में अपना मोटा ८ इंच का लंड पेला तो भाभी की चीख निकल गयी. वो एकदम रगदते घिसटते हुए अन्दर घुसा. लेकिन मैंने अपने पैरों का जोर कम नहीं किया. इनकी जांघे मेरे पैरों के बीच सिमटी हुयीं थीं.
” साल्ले बहन चोद तेरी सारी बहनों के बुर में गदहे का लंड…साले क्या तेरे मायकैवालियों की तरह भोंसडा है क्या जो ऐसे पेल रहे हो…” और उन्होंने भी कस के एक बार एक हाथ के नाखून मेरी पीठ में और दुसरे मेरी छाती पे सीधे मेरे टिट्स पे …उनकी बुर ने कस कस के मेरे लंड को अन्दर निचोडना शुरू कर दिया. मुझे लगा की मैं अब गया तब गया.
मैंने कहीं पढ़ा था की अगर ध्यान कहीं बटा दो तो झड़ना कुछ देर के लिए टल जाता है…और मैंने मन ही मन गिनती गिननी शुरू दी.
लेकिन भाभी भी नवल नागर थीं.
” हे देवर जी ये फाउल है. कल की छोकरियों के साथ ये चलेगा मेरे साथ नहीं…” और उनहोने कस के मेरा गाल काट लिया.
चलो भाभी आप भी ये फागुन याद करोगी और मैंने जोर जोर से लंड पूरा बाहर निकाल के धक्के मारने शुरू कर दिए. साथ में तिहरा हमला भी…मेरा एक हाथ उनके निपल के साथ खेल रहा था और दोसरा उनके क्लिट को कस कस के रगड़ मसल रहा था ….साथ में मेरे होंठ उनकी चून्चियों को निपल को कस कस के चूस रहे थे…
” हाँ ओह्ह ईईइ आह्ह मान गए अरे देवर जी…ओह्ह्ह बहोत दिन बाद …क्या करते हो…हां और जोर से करो…नहिन्न्न्नन्न्न्न निकला लो..लगता है..ओह्ह्हह्ह .”
कुछ देर बाद मैंने भाभी के दोनों हाथों को अपने एक हाथ से पकड़ के उनके सर के पास दबा दिया. जिस तरह से वो अपने नाखूनों से मेरे टिट्स को खरोंच रही थीं वो तो रुका. और अब जब मेरा लंड अन्दर घुसा तो पूरी देह का जोर देकर मैंने बिना आआगे पीछे किये उसे वहीँ दबाना शुरू किया. कभी मैं गोल गोल घुमा देता, जिससे भाभी की क्लिट मेरे लंड के बेस से खूब कस कस के रगड़ खा रही थी. होंठ कभी उनक एगालों कभी होंठो और कभी रसीली चून्चियों का रस लूट रहे थे.
ओह्ह्ह आह्ह्ह थोड़ी देर में भाभी फिर कगार पे पहुँच गयीं वो बार नीचे से अपने चूतड उठातीं, लेकिन मैं लंड पूरी तरह घुसाए हुए दबाये रहता.
लेकिन अब मुझसे भी नहीं रहा जा रहा था. एक बार फिर से मैंने उनकी गोरी लम्बी टांगों को अपने कंधे पे रखा और हचक हचक के…
भाभी भी कभी गोल गोल चूतड घुमातीं कभी जोर जोर से मेरे धक्के का जवाब देतीं तो कभी गाली से…साले हराम जादे…कहाँ से सिखा है…रंडियों के घर से हो…क्या….ओह्ह आह और जवाब में मैं कच कचा के कभी उनके होंठ कभी निपल काट लेता.
चन्दा भाभी ने झड़ना शुरू किया. लग रहा था कोई तूफान आ गया. हम दोनों के बदन एक दूसरे में गुथे हुए थे. सिर्फ सिसकियाँ सुनाई दे रही थीं.
साथ में मैं भी….भाभी की चूत भी…जैसे कोई ग्वाला गाय का थान दूहता है…बस उसी तरह कभी सिकुड़ती, कभी दबोचती…मेरे लंड को जैसे दुह रह थी और मैं गिर रहा था….पता नहीं कब तक…
बाहों में लिपटे लिपटे साइड में हो के हम वैसे ही सो गए. मेरा लिंग भाभी के अन्दर ही था…

सुबह अभी नहीं हुयी थी. रात का अन्धेरा बस छटा ही चाहता था. कहीं कोई मुर्गा बोला और मेरी नींद खुल गयी. हम उसी तरह से थे एक दूसरे की बाहों में लिपटे …मेरा मुर्गा भी फिर से बोलने लगा था. मैंने भाभी को फिर से बाहों में भर लिया. बिना आँखे खोले, उन्होंने अपनी टांग उठा के मेरी टांग पे रख दी और अपने हाथ से ‘उसे’ अपने छेद पे सेट कर दिया. हम दोनों ने एक साथ पुश किया और वो अन्दर…उसी तरह साथ साथ लेते , साइड में….हलके हलके धक्के के साथ…पता नहीं हम कब झड़े कब सोये.
सुबह जब मेरी नींद खुली तो सूरज ऊपर तक चढ़ आया था. और नींद खुली उस आवाज से…
” हे कब तक सोओगे…कल तो बहोत नखडे दिखा रहे थे… सुबह जल्दी चलना है शापिंग पे जाना है और अब…मुझे मालूम है तुम झूठ मूठ का ..चलो…मालूम है तुम कैसे उठोगे…”
और मैंने अपने होंठो पे लरजते हुए किशोर होंठो का रसीला स्पर्श महसूस किया. मैंने तब भी आँखे नहीं खोली.
” गुड मार्निंग.’ मेरी चिड़िया चहकी.
मैंने भी उसे बाहों में भर लिया और कस के किस करके बोला…”गुड मार्निंग..”
तुम्हारे लिए चाय अपने हाथ से बना के लाइ हूँ. बेद टी…अज तुन्हारी गुड लक है.” वो मुस्करा रही थी. मैं उठ के बैठ गया.
वो भी मेरे पास बेड पे बैठ गयी.
” अरे यार अभी मंजन नहीं किया..” मैं अंगड़ाई लेते बोला और उसको पकड़ लिया. बिना मुझे छुडाये वो बोली,
” अरे यार हर काम अम्न्जन कर के ही करते हो क्या…बेड टी पी लो शुकर मनाओ मेरा.” मैंने प्याली मुंह में लगायी . इतरा के वो बोली.
” कैसी है…”
” अच्छी है लेकिन …’ मुस्करा के मैं बोला…” मीठी थोड़ी कम है..”
” वो कमी मैं अभी पूरी कर देती हूँ…” वो बोली और मेरे हाथ से कप ले के थोड़ी सी जूठी कर दी और बोली अब लो देखो मीठी हो गयी होगी.
मैंने चाय के प्याले को वहीँ मुंह लगाया जहां उसने लगाया था और मुस्कारा के बोला हाँ अब मीठी है. एक दो चुद्की ले के मैंने चाय के प्याले को किनारे रख दिया और पकड़ के सीधे अपने होंठ उसके होंठ पे रख दिए.
छुड़ाने की कोशिश करते हुए अदा से वो बोली, ” ये क्या कर रहे हो तुम…सुबह सुबह…छोड़ो ना..’
” मैंने सोचा चीनी के डिब्बे से ही चीनी ले लूँ…” हंस के मैं बोला और कस के उसके होंठ गड़प कर लिए.
तब तक चन्दा भाभी कमरे में आ गयीं.
हंसते हुए वो बोलीं ..’ अच्छा, तो सुबह सुबह कुछ लोगों की गुड मार्निग हो गयी.’
वो कुनमुनाने लगी लेकिन मैंने नहीं छोड़ा. बल्कि चंदा भाभी को दिकाते हुए हाथ से उसके उभार हलके से दबा दिए.
चन्दा भाभी के जाने के बाद वो शिकायत के अंदाज में बोली…तुम ना…

तो कपडे तुमने …” मैं गूंजा को देख रहा था और वो बस खीस निकाले….
” मुझे क्यों देख रहे हैं …आप ने मुझे थोड़ी दिए थे कपडे…जिसे दिए थे उससे मांगिये..’. गुंजा हंसी.
मैंने गुड्डी को देखा पर वो दुष्ट …गूंजा से बोली..’. दे दे ना देख बिचारे कैसे उघारे उघारे … ‘
‘अरे तो कौन इनका शील भंग कर देगा…’ गुंजा बोली, और इत्ती दया आ रही है तो अपना ही कुछ दे दे न इस बिचारे को’
‘ क्यों शलवार सूट पहनियेगा …’ गुड्डी ने हंस के कहा.
मुझे भी मौका मी रहा था छेड़खानी करने का. मैंने गूंजा से कहा, ‘ हे तूने गायब किया है तुझी को देना पडेगा. और फिर मुड के मैं चन्दा भाभी से बोला,
‘ भाभी देखिये ना इन दोनों को इत्ता तंग कर रही हैं … ‘
‘ देखो मैं तुम तीनों के बीच नहीं पड़ने वाली आपस में समझ लो …’ हंस के वो बोली.
‘ पर पर मुझे जाना है …और शापिंग उसे बाद रेस्ट हाउस ..सामान सब वहां है फिर रात होने के पहले पहुंचना भी है यों गुड्डी तुम सुबह से कह रही हो शापिंग के लिए …. ‘
‘अरे ये बनारस है तुम्हारा मायका नहीं यहाँ दुकाने रात ८-९ बजे तक बंद होती हैं…’ भाभी बोली.
और क्या गुड्डी ने हामी भरी….शापिंग तो मैं आपसे करवाउंगी ही चाहे ऐसे ही चलना पड़े लेकिन उसकी जल्दी नहीं है आज कल होली का सीजन है दूकान खूब देर तक खुली रहती है…’
हलके से गुंजा गुड्डी की ओर मुंह करके बोली, (लेकिन हम सब लोगों को साफ़ साफ़ सुनाई पड़ा )
” हे ऐसे रात में लौटने की जल्दी क्या है कोई खास प्रोग्राम है क्या…”
गुड्डी का बस चलता तो वहीँ गुंजा को एक हाथ कस के जमाती, उसका चेहरा गुलाल हो गया.
चन्दा भाभी हलके हलके मुस्कराने लगीं…
तब तक चन्दा भाभी कमरे में आ गयीं.
हंसते हुए वो बोलीं ..’ अच्छा, तो सुबह सुबह कुछ लोगों की गुड मार्निग हो गयी.’
वो कुनमुनाने लगी लेकिन मैंने नहीं छोड़ा. बल्कि चंदा भाभी को दिखाते हुए हाथ से उसके उभार हलके से दबा दिए.
चन्दा भाभी के जाने के बाद वो शिकायत के अंदाज में बोली…तुम ना…
” तुम ना क्या.. अरे गुड मार्निग ज़रा अच्छे से होने दो न…” और अबकी मैंने और कस के उसके मस्त किशोर उरोज दबा दिए.
उसकी निगाह मेरे नीचे..साडी कम लुंगी से थोडा खुले थोडा ढके.. ‘ उसपे.’
वो कुनमुनाने लगा था. और क्यों ना कुनमुनाए…जिसके लिए वो इत्ते दिनों से बेकरार था वो एक दम पास में बैठी थी. मेरा एक हाथ उस के उभार पे था.
” हे ज़रा उसको भी गुड मार्निग करा दो ना….बेचारा तड़प रहा है…” उसकी और इशारा करते हुए मैंने गुड्डी से कहा.
” तड़पने दो …तुमको करा दिया ना तो फिर सबको…” वो इतरा के बोली. लेकिन निगाह उस की निगाह अभी भी वहीँ लगी थीं.
‘वो’ तब तक पूरा खड़ा हो गया था.
मैंने झटके से गुड्डी का सर एक बार में झुका दिया. और उस के होंठ कपडे से आधे ढके आधे खुले उस के ‘ सर’ पे…
मेरा हाथ कस कस के उस के गदराये जोबन को दबा रहा था.
उस ने पहले तो एक हलकी सी फिर एक कस के चुम्मी ली वहां पे…और बड़ी अदा से आँख नचा के खड़ी हो गयी और जैसे ‘ उसी’ से बात कर रही हो बोली,
‘ क्यों हो गयी ना गुड मार्निग …नदीदे कहीं के…” और फिर मुड के मेरा हाथ खींचते हुए बोली,
” उठो ना इत्ती देर हो रही सब लोग नाश्ते के लिए इंतज़ार कर रहे हैं…”
” जानू इंतज़ार तो हम भी कर रहे हैं…” हलके से फुसफुसाते हुए मैं बोला.
जोर से मुस्करा के वो उसी तरह फुफुसाते हुए बोली….
” बेसबरे मालूम है मुझे..चल तो रही हूँ ना आज तुम्हारे साथ …बस आज की रात…थोड़ा सा ठहरो…” और फिर जोर से बोली…
” उठो ना …तुम भी…सीधे से उठते हो या…”
मैं उठा के खडा हो गया. लुंगी ठीक करने के बहाने मैंने उसको सुबह सुबह पूरा दर्शन करा दिया.
लेकिन खड़े होते ही मुझे कुछ याद आया…
” अरे यार मैंने मंजन तो किया नहीं …”
” तो कर लो ना की मैं वो भी कराऊँ…” वो हंसी और हवा में चांदी की हजार घंटियाँ बज उठीं.
” और क्या अब सब कुछ तुम को करवाना पड़ेगा और मुझे करना पड़ेगा…” मुस्करा के मैं द्विअर्थी अंदाज में बोला.
” मारूंगी…” वो बनावटी गुस्से में बोली और एक हाथ जमा भी दिया.
” अरे तुम ना तुम्हे तो बस एक बात ही सूझती है…” मैंने मुंह बना के कहा. ” तुम भूल गयी …कल तुम्हारे कहने पे मैं रुक गया था …तो मेरे पास ब्रश मंजन कुछ नहीं है….” फिर मैं बोला.
” अच्छा तो बड़ा अहसान जता रहे है…रुक गया मैं …” मुझे चिढाते हुए बोली. ” फायदा किसका हो रहा है…सुबह सुबह गुड मार्निग हो गयी…कल मेरे साथ घूमने को मिल गया..मंजन तो मिल जाएगा…हाँ ब्रश नहीं हैं तो उंगली से कर लो ना…”
” कर तो लूं पर…” मैंने कुछ सोचते हुए कहा…”तुम्ही ने कहा था ना….की मेरे रहते हुए अब तुम्हे अपने हाथ का इस्तेमाल करने की जरूरत नहीं है…तो..”
” वो तो मैंने …” फिर अपनी बात का असर सोच के खुद शरमा गयी. बात बना के बोली , ” चल यार तू भी क्या याद करोगे…किसी बनारस वाली से पाला पड़ा था…मैं करा दूंगी तुम्हे अपनी उंगली से ..लेकिन काट मत खाना तुम्हारा भरोसा नहीं…’
वो जैसे ही बाहर को मुड़ी, उसके गोल गोल कसे नितम्ब देख के ‘पप्पू’ ९० डिग्री में आ गया. मैंने वहां एक हलकी सी चिकोटी काटी और झुक के उस के कान में बोला,
” काटूँगा तो जरूर लेकिन ..उंगली नहीं.”
वो बाहर निकलते निकलते चौखट पे रुकी और मुड के के मेरी ओर देख के जीभ निकाल के चिढा दिया.
बाहर जा के उस ने किसी से कुछ बात की शायद गुंजा से…चंदा भाभी की लड़की..जो उससे शायद एकाध साल छोटी थी और उसी के स्कूल में पढ़ती थी.
दोनों ने कुछ बात की फिर हलकी आवाज में हंसी.
“आइडिया ठीक है ..बन्दर छाप दन्त मंजन…..के लिए दीदी.” ये गुंजा लग रही थी.
” मारूंगी…” गुड्डी बोली लेकिन बात तुम्हारी सही है. फिर दोनों की हंसी. मैं दरवाजे से चिपका था.
” आप तो बुरा मान गयी दीदी…आखिर मेरी दीदी हैं तो मेरा तो मजाक का हक़ बनता है…वो भी फागुन में…” गूंजा ने छेडा. लेकिन गुड्डी भी कम नहीं थी.
” मजाक का क्यों तू जो चाहे सब ….मैं बुरा नहीं मानूंगी…” वो बोली.
थोड़ी देर में गुड्डी अन्दर आई. सच में उसके हाथ में बन्दर छाप दन्त मंजन था.
” कटखने लोगों के लिए स्पेशल मंजन…” हंस के वो बोली.
“पर उपर से नीचे तक हर जगह काटूँगा” मैं भी उसी के अंदाज में बोला.
” काट लेना…जैसे मेरे कहने से छोड़ ही दोगे मुझे मालूम है तुम कितने शरीफ हो…अब उठो भी बाथ रूम में तो चलो.” मुझे हाथ पकड़ के बाथ रूम में वो घसीट के ले गयी.
मैंने मंजन लेने के लिए हाथ फैला दिया बदले में जबरदस्त फटकार मिली.
” तुम ना मंगते हो…जहां देखा हाथ फैला दिया…क्या करोगे तुम्हारे मायकेवालियों का असर लगता है आ गया है तुम्हारे उपर. जैसे वो सब फैलाती रहती हैं ना सबके सामने .” ये कहते हुए गुड्डी ने अपने हाथ पे ढेर सारा लाल दन्त मंजन गिरा लिया था. वो अब जूनियर चन्दा भाभी बनती लग रही थी.
” मुंह खोलो…” वो बोली. और मैंने पूरी बत्तीसी खोल दी. उसने अपनी उंगली पे ढेर सारा मंजन लगा के सीधे मेरे दांतों पे और गिन के बत्तीस बार..और फिर दुबारा और मंजन लगा के और फिर तिबारा…स्वाद कुछ अलग लग रहा था फिर मैंने सोचा की शायद बनारस का कोई ख़ास मंजन हो…पूरा मुंह मंजन से भरा हुआ था. मैं वश बेसिन की और मुडा, तो वो बोली,
” रुको…आँखे बंद कर लो…मंजन मैंने करवाया तो मुंह भी मैं ही धुलवा देती हूँ.”
अच्छे बच्चे की तरह मैंने आँखे बंद रखी और उसने मुंह धुलवा दिया.
जब मैं बाहर निकला तो अचानक मुझे कुछ याद आया और मैं बोला…” हे मेरे कपडे….”
” दे देंगे देंगे…तुम्हारी वो घटिया शर्ट पैंट मैं तो पहनने से रही और आखिर किससे शरमा रहे हो मैंने तो तुम्हे ऐसे देख ही लिया है…चंदा भाभी ने देख ही लिया है और रहा गुंजा तो वो तो अभी बच्ची है. ” ये कहते हुए मुझे पकड़ के नाश्ते की टेबल पे वो खिंच ले गयी.
एक दम बच्ची नहीं लग रही थी वो. सफेद ब्लाउज और नीली स्कर्ट ..स्कूल यूनीफार्म में..
मेरी आँखे बस टंगी रह गयीं. चेहरा एकदम भोला भाला..रंग गोरा लेकिन बहोत गोरा नहीं …लेकिन आंखे उसकी चुगली कर रही थीं..खूब बड़ी बड़ी…चुहुल और शरारत से भरी …कजरारी…गाल भरे भरे ..एकदम चन्दा भाभी की तरह और होंठ भी, हलके गुलाबी रसीले भरे भरे उन्ही की तरह…जैसे कह रहे हों किस मी…किस मी नाट ….मुझे कल रात की बात याद आई जब गुड्डी ने उसका जिक्र किया था तो हंस के मैंने पूछा था क्यों बी एच एम् बी …( बड़ा होके माल बनेगी ) है क्या…तो पलटी के आँख नचा के उस शैतान ने कहा था…जी नहीं …बी एच काट दो ..और वैसे भी मिला दूंगी

मेरी आँखे जब थोड़ी और नीचे उतरी तो एकदम ठहर गयी.
उभार उसके …उसके स्कूल की युनिफोर्म …सफेद शर्ट को जैसे फाड़ रहे हों..और स्कूल टाई ठीक उनके बीच में …किसी का ध्यान ना जाना हो तो भी चला जाए…परफेक्ट किशोर उरोज..पता नहीं वो इत्ते बड़े थे या जान बुझ के उसने शर्ट को इत्ती कस के स्कर्ट में टाईट कर के बेल्ट बाँधी थी…
पता नहीं मैं कित्ती देर और बेशर्मों की तरह देखता रहता अगर गुड्डी ने ना टोका होता…
” हे क्या देख रहे हो…गुंजा नमस्ते कर रही है.”
मैंने ध्यान हटा के झट से उसके नमस्ते का ज़वाब दिया और टेबल पे बैठ गया.
वो दोनों सामने बैठी थीं. मुझे देख के मुस्करा रही थीं और फिर आपस में फुस्फुस्सा के कुछ बाते कर, टीनेजर्स की तरह खिलखिला रही थीं.
मेरे बगल की चेयर खाली थी.
हे चंदा भाभी कहाँ हैं. मैंने पुछा.
” अपने देवर के लिए गरमागरम ब्रेड रोल बना रही हैं…किचेन में.” आँख नचा के गुंजा बोली.
” हम लोगों के उठने से पहले से ही वो…किचेन में लगी हैं.” गुड्डी ने बात में बात जोड़ी.
मैंने चैन की सांस ली. तो इसका मतलब हम लोगों का रात का धमाल…इन दोनों को को..पता नहीं. .तब तक गुड्डी बोली.
‘ हे नाश्ता शुरू करिए ना…पेट में चूहे दौड़ रहे हैं हम लोगों के…और वैसे भी इसे स्कूल जाना है. आज लास्ट डे है होली की छुट्टी के पहले …लेट हो गयी तो मुरगा बनना पडेगा. ”
” मुरगा की मुरगी…हंसते हुए मैंने गुंजा को देख के बोला. मेरा मन उस से बात करने को कर रहा था लेकिन गुड्डी से बात करने के बहाने मैंने पुछा..
” लेकिन होली की छुट्टी के पहले वाले दिन तो स्कूल में खाली धमा चौकड़ी, रंग..ऐसी वैसी टाइटिलें…” मेरी बात काट के गुड्डी बोली…
” अरे तो इसी लिए तो जा रही है ये …आज टाइटिलें…” उसकी बात काट के गुंजा बीच में बोली, ” अच्छा दीदी, बताऊँ आपको क्या टाइटिल मिली थी.”
” मारूंगी…आप नाश्ता करिए न कहाँ इस की बात में फँस गए..अगर इस के चक्कर में पड़ गए तो…”
लेकिन मुझे तो जानना था. उसकी बात काट के मैंने गुंजा से पूछा…” हे तुम इससे मत डरो मैं हूँ ना..बताओ गुड्डी को क्या टाइटिल मिली थी. ”
हंसते हुए गूंजा बोली…बिग बी ..
पहले तो मुझे कुछ समझ नहीं आया बिग बी मतलब लेकिन जब मैंने गुड्डी की ओर देखा तो लाज से उसके गाल टेसू हो रहे थे. और मेरी निगाह जैसे ही उसके उभारों पे पड़ी एक मिनट में बात समझ में आ गयी…बिग बी…बिग बूब्स …वास्तव में उसके अपने उम्र वालियों से २० ही थे. गुड्डी ने बात बदलते हुए मुझसे कहा, ” हे खाना शुरू करों ना..ये ब्रेड रोल ना गूंजा ने स्पेसली आपके लिए बनाए हैं.”
” जिसने बनाया है वो दे….” हंस के गुंजा को घूरते हुए मैंने कहा. मेरा द्विअर्थी डायलाग गुड्डी तुरंत समझ गयी. और उसी तरह बोली,
” देगी जरुर देगी…लेने की हिम्मत होनी चाहिए क्यों गुंजा…”
” एकदम …” वो भी मुस्करा रही थी. मैं समझ गया था की सिर्फ शरीर से ही नहीं वो मन से भी बड़ी हो रही है.
गुड्डी ने फिर उसे चढ़ाया…

” हे ये अपने हाथ से नहीं खाते इनके मुंह में डालना पड़ता है अब अगर तुमने इत्ते प्यार से इनके लिए बनाया है तो…”
” एकदम ” और उसने एक किंग साइज गरम ब्रेड रोल निकाल के मेरी ओर बढ़ाया. हाथ उठने से उसके किशोर उरोज और खुल के ..
मैंने खूब बड़ा सा मुंह खोल दिया लेकिन मेरी नदीदी निगाहें उसके उरोजों से चिपकी थीं.
” इत्ता बड़ा सा खोला है …तो डाल दे पूरा…एक बार में …इनको आदत है ..” गुड्डी भी अब पूरे जोश में आ गयी थी.
” एक दम ..” और सच में उसकी उंगलिया आलमोस्ट मेरे मुंह में और सारा का सारा ब्रेड रोल एक बार में ही….
स्वाद बहोत ही अच्छा था ..लेकिन अगले ही पल में शायद मिर्चे का कोई टुकड़ा…और फिर एक ..दो….मेरे मुंह में आग लग गयी थी. पूरा मुंह भरा हुआ था इसलिए बोल नहीं निकल रहे थे.
वो दुष्ट …गुंजा…अपने दोनों हाथो से अपना भोला चेहरा पकडे मेरे चेहरे की ओर टुकुर टुकुर देख रही थी.
” क्यों कैसा लगा ..अच्छा था ना….” इतने भोलेपन से उसने पूछा की..तब तक गुड्डी भी… मेरी ओर ध्यान सेदेखते हुए वो बोली,
” अरे अच्छा तो होगा ही तूने अपने हाथ से बनाया था..इत्ती मिर्ची डाली थी…”
मेरे चेहरे से पसीना टपक रहा था.
गुंजा बोली…” आपने ही तो बोला था की इन्हें मिरेचे पसंद है तो…मुझे लगा की आपको तो इनकी पसंद नापसंद सब मालूम ही होगी…और मैंने तो सिर्फ चार मिर्चे डाली थीं बाकी तो आपने बाद में…”
इसका मतलब दोनों की मिली भगत थी ..मेरी आँखों से पानी निकल रहा था..बड़ी मुस्किल से मेरे मुंह से निकला ..
” पानी….पानी….”
” ये क्या मांग रहे हैं …” मुश्किल से मुस्कराहट दबाते हुए गुंजा बोली.
” मुझे क्या मालूम तुम से मांग रहे हैं …तुम दो…” दुष्ट गुड्डी भी अब डबल मिनीग डायलाग की एक्सपर्ट हो गयी थी. पर गुंजा भी कम नहीं थी…
” हे मैं दे दूंगी ना तो फिर आप मत बोलना की ….” उसने गुड्डी से बोला.
यहाँ मेरी लगे हुयी थी और वो दोनों ….
” दे दे ..दे दे…आखिर मेरी छोटी बहन है और फागुन है तो तेरा तो…” बड़ी दरयादिली से गुड्डी बोली.
बड़ी मुश्किल से मैंने मुंह खोला…मेरे मुंह से बात नहीं निकल रही थी…मैंने मुंह की ओर इशारा किया …
” अरे तो ब्रेड रोल और चाहिए तो लीजिये ना…” और गुंजा ने एक और ब्रेड रोल मेरी ओर बढ़ाया. ” कोई चाहिए तो साफ साफ मांग लेना चाहिए ..जैसे गुड्डी दीदी वैसे मैं…”
वो नालायक…मैंने बड़ी जोर से ना ना में सर हिलाया और दूर रखे ग्लास की ओर इशारा किया.
उसने ग्लास उठा के मुझे दे दिया लेकिन वो खाली था. एक जग रखा था…वो उसने बड़ी अदा से उठाया…
” अरे प्यासे की प्यास बुझा दे बड़ा पुण्य मिलता है…” ये गुड्डी थी.
” बुझा दूंगी … बुझा दूंगी अरे कोई प्यासा किसी कुंए के पास आया है तो…” गुंजा बोली और नाटक कर के पूरा जग उस ने ग्लास में उड़ेल दिया.
सिर्फ दो बूँद पानी था.
” अरे आप ये गुझिया खा लीजिये ना गुड्डी दीदी ने बानायी है आपके लिए…बहोत मीठी है कुछ आग कम होगी तब तक मैं जा के पानी लाती हूँ. आप खिला दो ना अपने हाथ से…” वो गुड्डी से बोली और जग लेके खड़ी हो गयी.
गुड्डी ने प्लेट में से एक खूब फूली हुयी गुझिया मेरे होंठों में डाल ली और मैंने गपक ली.
झट से मैंने पूरा खा लिया मैं सोच रहा था की कुछ तो तीता पन कम होगा…लेकिन जैसे ही मेरे दांत गड़े एक दम से….गुझिया के अन्दर बजाय खोवा सूजी के अबीर गुलाल और रंग भरा था. मेरा सारा मुंह लाल…
और वो दोनों हंसते हँसते लोटपोट …
तब तक चंदा भाभी आई एक प्लेट में गरमागरम ब्रेड रोल लेके…
लेकिन मेरी हालत देख के वो भी अपनी हंसी नहीं रोक पायीं.
क्या हुआ ये दोनों शैतान …एक ही काफी है अगर दोनों मिल गयी ना…क्या हुआ.”
मैं बड़ी मुश्किल से बोल पाया …….पानी.
उन्होंने एक जासूस की तरह पूरे टेबल पे निगाह दौडाई जैसे किसी क्राइम सीन का मुआयना कर रही हों.
वो दोनों चोर की तरह सर झुकाए बैठी थीं.
फिर अचानक उनकी निगाह केतली पे पड़ी और वो मुस्कराने लगीं. उनहोने केतली उठा के ग्लास में पोर किया …और पानी.
रेगिस्तान में प्यासे आदमी को कहीं झरना नजर आ जाए वो हालत मेरी हुयी.
मैंने झट से उठा के पूरा ग्लास खाली कर दिया. तब जाके कहीं जान में जान आई .
जब मैंने ग्लास टेबल पे रखा तब चन्दा भाभी ने मेरा चेहरा ध्यान से देखा. वो बड़ी मुश्किल से अपनी हंसी रोकने की कोशिश कर रही थीं लेकिन हंसी रुकी नहीं.
और उंके हंसते ही वो दोनों जो बड़ी मुस्किल से संजीदा थीं…वो भी ..फिर तो एक बार हंसी ख़तम हो और मेरे चेहरे की और देखें तो फिर दुबारा ..और उसके बाद फिर…
” आप ने सुबह …ही ही ही ही…आपने अपना चेहरा…ही ही शीशे में…ही ही ही ही…” चन्दा भाभी बोलीं.
” नहीं वो ब्रश नहीं था तो गुड्डी ने…उनगली से मंजन …फिर…” मैंने किसी तरह समझाने की कोशिश की मेरे समझ में कुछ नहीं आ रहा था.
” जाइए जाइए…मैंने मना तो नहीं किया था शीशा देखने को…आप ही को मार नाश्ता करने की जल्दी लगी थी ..मैंने कहा भी की नाश्ता कहीं भागा तो नहीं जा रहा है..लेकिन ये ना…हर चीज़ में जल्द बाजी…” ऐसे बन के गुड्डी बोली.
” अच्छा मैं ले आती हूँ शीशा …” और मिनट भर में गुंजा दौड़ के एक बड़ा सा शीशा ले आई लग रहा था कही वाश बेसिन से उखाड़ के ला रही हो. और मेरे चेहरे के सामने कर दिया.
मेरा चेहरा फक्क हो गया. न हंसते बन रहा था ना….
तीनों मुस्करा रही थीं.
मांग तो मेरी सीधी मुंह धुलाने के बाद गुड्डी ने काढी थी …सीधी ..और मैं ने उसकी शरारत समझा था. लेकिन अब मैंने देखा…चौड़ी सीधी मांग और उसमे दमकता …सिन्दूर…
माथे पे खूब चौड़ी सी लाल बिंदी…जैसे सुहागन औरतें लगाती है…होंठों पे गाढ़ी सी लाल लिपस्टिक और …जब मैंने कुछ बोलने के लिए मुंह खोला तो दांत भी सारे लाल लाल.
अब मुझे बन्दर छाप दन्त मंजन का रहस्य मालूम हुआ और कैसे दोनों मुझे देख के मुस्करा रही थीं….ये भी समझ में आया.
चलो होली है चलता है ..चन्दा भाभी ने मुझे समझाया और गुंजा को बोला हे जाके तौलिया ले आ.
उन्होंने गुड्डी से कहा हे हलवा किचेन से लायी की नहीं…मैं तुरंत उनकी बात काट के बोला ना भाभी अब मुझे इस के हाथ का भरोसा नहीं है आप ही लाइए.
हंसते हुए वो किचेन में वापस में चली गयीं.
गुंजा तौलिया ले आई और खुद ही मेरा मुंह साफ करने लगी. वो जान बुझ के इत्ता सट के खड़ी थी की उसके उरोज मेरे सीने से रगड़ रहे थे.
मैंने भी सोच लिया चलो यार चलता है इत्ती हाट लड़कियां….मैंने गुड्डी से चिढाते हुए कहा चलो बाकी सब तो कुछ नहीं लेकिन ये बताओ…सिंदूर किसने डाला था.
गुंजा ने मेरा मुंह रगड़ते हुए पूछा….” क्यों…”
” इसलिए की सिन्दूर दान के बाद सुहागरात भी तो मनानी पड़ेगी ना… अरे सिन्दूर चाहे कोई डाले सुहागरात वाला काम किये बना तो पूरा नहीं होगा ना काम…” मैंने हंसते हुए कहा.
” इसी ने डाला था जो तुम से इतनी सट के खड़ी है…मना लो सुहागरात…” खिलखिलाते हुए गुड्डी बोली.
गुंजा छटक के दूर जा के खड़ी हुयी, एकदम गुड्डी के बगल में.
” जी नहीं ..आइडिया किसका था…बोला तो आप ने ही था और बाद में लिपस्टिक….फिर एक चुटकी सिन्दूर…तो आपने भी….” वो गुड्डी को देखते हुए बोल रही थी.
” चलो कोई बात नहीं ..दोनों के साथ मना लूँगा…” हंसते हुए मैं बोला.
‘ पहले इनके साथ …” गुड्डी की और इशारा करके वो बोली.
” नहीं मांग तो तुमने भरी है पहले इसके साथ…” अब गुड्डी बोली.
तब तक चन्दा भाभी आगई हलवे का बरतन लिए. क्या मस्त महक आरही थी.
“क्या तुम दोनों पहले आप पहले आप कर रही हो..कोई लखनऊ की थोड़े ही हो…” ये कहते हुए वो कटोरी में हलवा निकालने लग गयी.
वो बिचारी क्या समझें की किस चीज के लिए पहले आप पहले आप हो रही है. अगर समझतीं तो…
” हे भाभी इत्ता नहीं…’ वो ढेर सारा हलवा मेरी कटोरी में डाल रही थीं. हलवा भी पूरा देसी घी से तर , काजू बादाम पडा हुआ..सूजी का हलवा..
‘ अरे खा ना ..रात में तो सारी तेरी मलाई तो मैंने निकाल ली ..” मुंह दबा के फुसफुसाते हुए वो बोलीं.
मेरे मना करने पे जितना डाल रही थीं उसका भी दूना उन्होंने डाल दिया.
” जितना मना करोगे उसका दूना डालूंगी….अब तक तुम नहीं समझे…” हंस के भाभी बोलीं. भाभी भी …बिना डबल मीनिंग डायलाग बोने रह नहीं सकती थीं.
वो दोनों भी एक दूसरे को देख के मुस्करा रही थीं.
” ये ऐसे ही समझते हैं…” गुड्डी आँख नचा के भाभी से बोली. हम सब खाने लगे तो भाभी ने मुझे देख के कहा, ” हे, इन सबों की शैतानियों का बुरा तो नहीं माना.”
मैं बस उन दोनों को देख के मुस्करा दिया.
‘ अरे ससुराल में आये हो फागुन का दिन है….चलो सलहज की कमी नहीं है…” भाभी बोलीं, ‘ लेकिन यहाँ कोई छोटी साली तो है नहीं , बिन्नो की वैसे भी कोई छोटी बहन नहीं है तो चलो इन दोनों को छोटी साल्ली ही मान लो. और क्या …बिना साली सलहज के ससुराल और होली दोनोका मजा आधा है.”
” एकदम …” किसी बड़ी बूढी की तरह गुड्डी ने हाँ में हाँ मिलाई.
” लेकीन समझ लेना तुम दोनों….साली बन गयी तो मैं ..लाइसेंस मिल गया है अब मुझे डरती तो नहीं…” मैंने गुंजा और गुड्डी को देख कर कहा.
” डरूं क्यों….डरें आप आप ..अरे हम दोनों ने तो बिना लाइसेंस के होली शुरू कर दी थी….” दोनों शैतान एक साथ बोलीं.
‘ लेकिन साली का हक़ भी होता है आप की जेब खाली करा लुंगी…लेकिन आप की तो जेब ही नहीं…” हंस के गुंजा बोली.
” अरे तो इसकी चिंता मत कर, इनका पर्स मेरे पास है और कार्ड भी और पिन नंबर भी मालूम है तू मेरी चमचा गिरी कर…” गुड्डी ने मेरा पर्स दिखाते हुए कहा.
तभी मुझे याद आया मेरे कपडे …
” हे मेरे कपडे….” मैंने गुड्डी से पूछा…
भाभी मंद मंद मुस्करा रही थीं.
” वो बेच के हमने बरतन खरीद लिए …” मुस्करा के गुंजा बोली.

तभी मुझे याद आया मेरे कपडे …
” हे मेरे कपडे….” मैंने गुड्डी से पूछा…
भाभी मंद मंद मुस्करा रही थीं.
” वो बेच के हमने बरतन खरीद लिए …” मुस्करा के गुंजा बोली.
तो कपडे तुमने …” मैं गूंजा को देख रहा था और वो बस खीस निकाले….
” मुझे क्यों देख रहे हैं …आप ने मुझे थोड़ी दिए थे कपडे…जिसे दिए थे उससे मांगिये..’. गुंजा हंसी.
मैंने गुड्डी को देखा पर वो दुष्ट …गूंजा से बोली..’. दे दे ना देख बिचारे कैसे उघारे उघारे … ‘
‘अरे तो कौन इनका शील भंग कर देगा…’ गुंजा बोली, और इत्ती दया आ रही है तो अपना ही कुछ दे दे न इस बिचारे को’
‘ क्यों शलवार सूट पहनियेगा …’ गुड्डी ने हंस के कहा.
मुझे भी मौका मी रहा था छेड़खानी करने का. मैंने गूंजा से कहा, ‘ हे तूने गायब किया है तुझी को देना पडेगा. और फिर मुड के मैं चन्दा भाभी से बोला,
‘ भाभी देखिये ना इन दोनों को इत्ता तंग कर रही हैं … ‘
‘ देखो मैं तुम तीनों के बीच नहीं पड़ने वाली आपस में समझ लो …’ हंस के वो बोली.
‘ पर पर मुझे जाना है …और शापिंग उसे बाद रेस्ट हाउस ..सामान सब वहां है फिर रात होने के पहले पहुंचना भी है यों गुड्डी तुम सुबह से कह रही हो शापिंग के लिए …. ‘

‘अरे ये बनारस है तुम्हारा मायका नहीं यहाँ दुकाने रात ८-९ बजे तक बंद होती हैं…’ भाभी बोली.
और क्या गुड्डी ने हामी भरी….शापिंग तो मैं आपसे करवाउंगी ही चाहे ऐसे ही चलना पड़े लेकिन उसकी जल्दी नहीं है आज कल होली का सीजन है दूकान खूब देर तक खुली रहती है…’
हलके से गुंजा गुड्डी की ओर मुंह करके बोली, (लेकिन हम सब लोगों को साफ़ साफ़ सुनाई पड़ा )
” हे ऐसे रात में लौटने की जल्दी क्या है कोई खास प्रोग्राम है क्या…”
गुड्डी का बस चलता तो वहीँ गुंजा को एक हाथ कस के जमाती, उसका चेहरा गुलाल हो गया.
चन्दा भाभी हलके हलके मुस्कराने लगीं.
मैं इधर उधर देखने लगा फिर मैंने बात बदलने की कोशिश की, .’ हे लेकिन कपडे तो चाहिए मैं कब तक ऐसे…”
‘ सुन तू अपना बार्मुडा दे दे न, वैसे भी वो इत्ता पुराना हो गया है ” गुड्डी ने गुंजा को उकसाया.
” दे दूँ…लेकिन कहीं किसी ने इनके ऊपर रंग वंग डाल दिया तो…मेरा तो खराब हो जाएगा.” बड़ी शोख अदा मैं गुंजा बोली.
मैंने मुड़ के झट चंदा भाभी की ओर देखा, ” भाभी मतलब …रंग वंग…हमें जाना है और …”
” देखो, इसकी गारंटी मैं नहीं लेती …ससुराल है बनारस है और तुम ऐसे ..चिकने हो किसी का डालने का मन ही कर जाए”

देखो, इसकी गारंटी मैं नहीं लेती …ससुराल है बनारस है और तुम ऐसे ..चिकने हो किसी का डालने का मन ही कर जाए”
भाभी भी कोई भी हो बिना अपने अंदाज के… तब तक गुड्डी भी बोल उठी …
” और क्या दूबे भाभी भी तो आने वाई और उन के साथ जिन की नयी नयी शादी हुयी है इसी साल … ”
चम्पा भाभी ने उसे आँख तरेर कर घूरा जैसे उसने कोई स्टेट सीक्रेट लीक कर दिया हो. वो चालाक झट से बात पलट के वो गुंजा की ओर मुड़ी और कहने लगी,
” हे तू चिंता मत कर अगर ज़रा सा भी खराब हुआ तो ये तुम्हे नया दिलवाएंगे और साथ में टाप फ्री…”
” मैं इस चक्कर में नहीं पड़ती…तुम सब तो आज चे जाओगे और मैं स्कूल जा रही हूँ तो फिर… ” गुंजा ने फिर अदा दिखायी.
” अरे यार इनका तो यही रास्ता है ..होली से लौट के मुझे छोड़ने तो आयेंगे फिर उस समय…” गुड्डी फिर मेरी ओर से बोली लेकिन गुंजा चुकने वाली नहीं थी. उसने फिर गुड्डी को छेड़ा ,
” अच्छा आप बहोत इन की ओर से गारंटी ले रही हैं कोई खास बात है क्या जो मुझे पता नहीं है…”
अबकी तो चंदा भाभी ऐसे मुसकराई की बस …जो न समझने वाला हो वो भी समझ जाए.
” चलो मैं कहता हूँ शापिंग भी करूँगा और जो तुम कहोगी वो… भी. ” मैंने बात सम्हालने की कोशीश की.
“ये हुयी न बात,” मेरे प्याले में चाय उड़लते हुए गुंजा बोली मेरे बेशर्म निगाहें उसके झुके उरोजों से चिपकी थीं. बेपरवाह वो चन्दा भाभी को चाय देती हुयी बोली,
” क्यों मम्मी दे दूं ..बिचारे बहूत कह रहे हैं …”
“तुम जानो….ये जानें ..मुझे क्यों बीच में घसीट रही हो…जैसा तुम्हारा मन. ” चन्दा भाभी अपने अंदाज में बोली.
गुड्डी और गुंजा मेज समेट रही थीं. चन्दा भाभी ने उठते हुए मेरी लुंगी की गाँठ की ओर झपट कर हाथ बढ़ाया. मैंने घबडा के दोनों हाथों से उसे पकड़ लिया. उनका क्या ठिकाना कहीं खींच के मजाक मजाक में खोल ही न दें.
वो हंस के बोलीं, ” अब इसे वापस कर दीजिये मैंने सिर्फ रात भर के लिए दी थी. प्योर सिल्क की है…अगर इस पे रंग वंग पड़ गया न तो आपके उस मायके वाले माल को रात भर कोठे पे बैठाना पड़ेगा तब जाके कीमत वसूल हो पाएगी. ”
गुंजा और गुड्डी दोनों मुंह दबाये हंस रही थीं.
भाभी जाते जाते मुड के खड़ी हो गयीं और मुझसे कहने लगी..,
” हे बस १० मिनट है तुम्हारे पास चाहे जो इन्तजाम करना हो कर लो…”. और वो सीढ़ी से नीचे उतर पड़ीं .
गुंजा अपने कमरे की ओर जा रही थी..मैंने पीछे से आवाज लगाईं…हे दे दो ना…वो रुकी..मुस्काराई और बोलो चलो तुम इत्ता कहते हो तो…और आगे वो और पीछे मैं उसके कमरे में चल पड़े.
कमरे में गुंजा ने अपनी वार्ड रोब खोली. झुक कर वो नीचे की शेल्फ पे ढूंढ रही थी.
मेरी तो हालत ख़राब हो गयी.
झूकने से उसके गोरे गोरे भरे मांसल नितम्ब एक दम ऊपर को उठ आये थे. उसकी युनिफोर्म की स्कर्ट आलोमोस्ट कमर तक उठ आई थी. उसने एक बहोत ही छोटी सी सफेद काटन की पैंटी पहन रखी थी, जो एक दम स्ट्रेच हो के उसकी दरारों में घुस गयी थी. उसके भरे भरे किशोर चूतड़ों के साथ उसके बीच की दरार भी लगभग साफ दिख रही थी. मेरे जंगबहादुर से नहीं रहा गया. वो एकदम ९० डिग्री हो गए और पीछे से रगड़ खाने लगे. अब जो होना है सो हो जाय, मुझसे नहीं रहा गया. मैंने उसकी कमर पकड़ ली. उसने कुछ नहीं बोला और थोडा और झुक गयी सबसे नीचे वाली शेल्फ में देखते हुए…मैं पहले धीरे धीरे फिर कस कस के उसके नितम्बों पे अपना हथियार रगड़ने लगा. पहले तो उसने कुछ रेस्पोंड नहीं किया लेकिन फिर जैसे दायें से बाएं देख रही हो और फिर बाएं से दायें …अपनी कमर वो हिलाने लगी. इन सब में आगे से उसकी सफेद शर्ट भी थोड़ी सी स्कर्ट से बाहर निकल आई थी.
मेरा एक हाथ उसके पेट पे चला गया. …एकदम..मक्खन मलाई …
वो कुछ नहीं बोली बस उसका अपने पिछवाड़े को मेरे पीछे रगड़ना थोडा हल्का हो ग़या.
मेरी उगलियाँ ऊपर की ओर बढीं और फिर उसके ब्रा के बेस पे आके रुक गयीं. थोड़ी देर में दो उँगलियों ने और जोश दिखाया और ब्रा के अन्दर घुस गयीं.
तभी वो झाटके से खड़ी हो गयी और मेरी ओर मुड गयी.
उसके उरोज अब मेरे सीने से रगड़ खा रहे थे.
अपने आप मेरे हाथ उसके नितम्बों पे पहुच गए.
” मैं एकदम बुद्धू हूँ …तुम्हारे तरह…” मुस्करा के वो बोली.
जवाब मेरे हाथों ने दिया…कस के उसके नितम्ब दबा के.
” क्यों और मैं कैसे बुद्धू हूँ….” मैंने उसके कानों को लगभग होंठो से सहलाते पुछा.
” इसलिए ..जाने दो…गुड्डी दी कहती थीं की आप बड़े बुद्धू हो भले ही पढ़ाई में चाहे जित्ते तेज हो ..लेकिन मुझे लगता था की आप इत्ते ..ये कैसे हो सकता है की…लेकिन जब आज तुमसे मिली…मैं समझ गयी की वो जा कहती थी ना आप …” गुंजा के शब्द मिश्री घोल रहे थे.
” मेरे हाथ अब खुल के उसके चूतड दबा रहे थे.
” तो क्या समझा तुमने की मैं उतना बुद्धू नहीं हूँ बल्कि उससे कम हूँ या एकदम नहीं हूँ…” मैंने कहा. उसने कस के मेरे गाल पे चिकोटी काटी,.
मेरी दो उंगलिया. उसकी गांड की दरार पे धंस गयी.
‘वो’ तो सामने कस के रगड़ खा ही रहा था.
” जी नहीं…आप …तुम..उतने नहीं…उससे भी ज्यादा बुद्धू हो…और आपके असर से मैं भी…ये देखिये बारामुडा मैंने हुक पे टांग रखा था और नीचे ढूंढ रही थी. कल रात भर मैंने इसे पहने रही…जब स्कूल की ड्रेस पहनी तो उतार के यहीं टांग दी. और नीचे ढूंढ रही थी. ” वो बोली और उतार के उसने मुझे पकड़ा दिया.
उस के अन्दर से उसकी देह की महक आ रही थी. वो शरमा गयी और बोली, ” असल में मैं..घर में ..वो…मेरा …वो ..नहीं ..”
” अरे साफ साफ बोलो ना की पैंटी नहीं पहनती घर में …तो ठीक तो है उसको भी हवा लगनी चाहिये…तुम्हारी परी को….” और ये कह के मैंने कस के उसके बारमुडा को सूंघ लिया.
” हट बदमाश ..गंदे ..छि…कभी लगता है एकदम सीधे हो और कभी एक दम बदमाश ….” मुझे मुक्के से मारते वो बोली. ” और अगर मेरे आने से पहले गए…मैं कभी कभीइ नहीं बोलूंगी. ”
” कैसे जाउंगा…तुम मेरी छोटी साली जो हो..और तुम्हारी मम्मी ने भी बोल दिया अब तो मुझे लाइसेंस मिल ग़या है…बिना साल्ली को रगड़े रंग लागाये…होली खेले…”
” होली तो मैं खेलूंगी आप से आज को आप को पता चलेगा है कोई रंग लगाने वाली…”
मुझे से दूर हट के मुस्कराते हुए वो बोली.
तब तक नीचे से चन्दा भाभी की आवाज आई .”.हे नीना इंतजार कर रही तुम्हारा आओ बस आने वाली है. ”
” हे टाप …” मैंने याद दिलाया.
” मैं भी …आप के चक्कर में …ये भी यहीं है…” और ऊपर से से उठा के उसने दे दिया.
तब तक जैसे उसको कुछ याद आया हो…” हे और मेरी होली गिफ्ट..”
” एक दम कहो तो आज ही…” मैं बोला.
” ना आज तो मेरी शाम को एक्स्ट्रा क्लास है…आप लौट के आओगे ना होली के चार दिन बाद…तब और छोडूंगी नहीं पूरी जेब खाली करा लूंगी…” हंस के वो बोली.
“एकदम टाप भी और स्कर्ट भी ..और अन्दर वाला भी …’ ये कह के मैंने उसके उरोज और चुन्मुनिया दोनों को छु दिया. ये मौक़ा मैं कैसे जाने देता.
वो गुलाल हो गयी. लेकिन फिर बोली ठीक है…मंजूर …और बाहर निकालने के लिए बढ़ी तो मैंने आवाज देके रोक लिया.
“बस एक मिनट …ज़रा मैं ये बार्मुदा ट्राई तो कर लूं कहीं अन्दर न जाए तो…” मैं बोला.
हंसती हुयी वो बोली…”जाएगा जाएगा..पुरा अन्दर जाएगा ..बस ट्राई तो करिए. ”
मैं समझ रहा था वो क्या इशारा कर रही है लेकिन मेरा पूरा ध्यान लुंगी के के अन्दर उसे चढाने लगा था. डर ये लग रहा था की कहीं सरक के लुंगी नीचे न आ जाए और मैं उसके सामने….
वो सामने खड़ी देख रही थी.
तभी गुड्डी घुसी. एकदम जोश में…हम दोनों को देख के जोर से बोली….
” अरे १० मिनट कब के हो गए और तुमने चेंज भी नहीं किया…और ये कैसे पहन रहे हो…पहले साडी उतार दो …” और ये कह के पास में आके साड़ी कम लुंगी खींचे ने लगी. ../
मेरे दोनों हाथ तो बारमुडा ऊपर चढाने में फसे थे. मैंने बहोत रेसिस्ट किया…लेकिन तब तक गुंजा को देख के गुड्डी बोली,
” अच्छा तो इससे शरमा रहे हो…क्यों देख लेगी तो बुरा लगेगा क्या…” गुंजा से उसने पूछा.
उसने ना में कस के दायें से बाएं सर हिलाया.
गुड्डी के एक झटके से चन्दा भाभी की साडी जो मैंने लुंगी की तरह पहन रखी थी उसके हाथ में…
गुड्डी ने आधा पहना बार्मुदा भी नीचे खीन्च दिया. मेरे दोनों हाथ तो ‘वहां’ थे.
वो भी किसी तरह अपनी हँसी दबाये थी.
पलंग पे पडा एक छोटा सा तौलिया उसने मेरी ओर बढ़ा दिया और बोली.
“ये कपडे नहाने तैयार होने के बाद…”
“..मतलब…” मुश्किल से पीछे मुड के उस तौलिये को बाँध के मैंने पुछा.
अब खुल के हंसती हुई उस सारंग नयनी ने कहा…
” मतलब..ये है की…आपकी भाभी नी आदेश दिया है की आपको चिकनी चमेली बना दिया जाय. सुबह तो सिर्फ मंजन किया था ना…तो फिर..”

हाथ पकड़ के वो मुझे चंदा भाभी के कमरे में ले आई जहां मैं रात में सोया था.
” ,पर मेंरा तो कोई सामान ही नहीं रेजर, शेविंग का सामान….बाकि सब..” मैंने दुहराया.
” बुद्दू राम जी ये सब आपकी चिंता का विषय नहीं जब तक मैं हूँ आपके पास….मैं हूँ ना….” मेरे गाल कस के पकड़ के वो दुष्ट बोली. ” अरे यार मैंने भाभी से पुछा था तो उनके हसबेंड के फ्रेश रेजर ब्रश सब कुछ है और साबुन वाबुन तो लड़कियों के लगाने में कोई ऐतराज नहीं होना चाहिए तुम्हे…बाकी ” भाभी के देर्सिंग टेबल की ओर इशारा करते हुए हुए वो बोली…” लिपस्टिक, नेल पालिश रूज जो भी चाहिए…लेकिन ये बताओ जब मैंने तुम्हारी लुंगी किंची तो इतना छिनछिना क्यों रहे थे क्या कभी रैगिंग में तुम्हारे कपडे वपड़े नहीं उतरवाये गए क्या..मैंने तो सूना है रैगिंग में बहोत कुछ होता है…” आँख नचा के वो बोली.

.” सही सूना है तुमने लेकिन बस मैं बच ग़या…एक तो मैं मेडिकल इंजीनयर वाला नहीं हूँ और दूसरे..” मेरी बात काट के वो बोली.
” चलो कोई बात नहीं वो सब कसर आज पूरी हो जायेगी..दूबे भाभी…साथ में ….बस देखना…” और खीन्च के उसने मुझे बात रूम में पहुंचा दिया.
” मैं नहला दूं …” शरारत से वो बोली.
” नहीं नहीं ….” मुझे सुबह का बन्दर छाप लाल दन्त मंजन याद था.
” जाने दो यार ..मेरे भी …वो पांच दिन…चल रहे हैं …वरना तुम्हारे मना करने का मेरे ऊपर क्या फरक पड़ता. अभी मैं ब्रश रेजर वेजर लेके आती हूँ…” और वो बात रूम के बाहर निकल के एक आलमारी खोलने लगी.
क्या मस्त बाथ रूम था.
हलके गुलाबी रंग की टाइल्स, इक बड़ा सा बाथ टब, शावर, एकदम माडर्न फिटिंग्स, और जब मैंने ऊपर नजर घुमाई …इम्पोर्टेड साबुन, शैम्पू, जेल,. डियो. जो आप सोच सकतें हैं वो सब कुछ ..टब के साथ बबल बाथ वाले सोप…मैंने बाथ टब का टैप आन कर दिया…और उसमें बबल बाथ वाला सोप डाल दिया. थोड़ी ही देर में टब भर गया था. मैंने सोचा था अच्छे से शेव कर, थोड़ी देर टब में नहाऊंगा. रात भर की थकान उतर जायेगी., और उसे बाद ठन्डे पानी से बढ़िया शावर …एं वो रेजर वेजर…वो गुड्डी की बच्ची पता नहीं कहाँ गायब हो गयी…
शैतान का नाम लो शैतान हाजिर…वो आगई हांफते कांपते..
” देखो मैं तुम्हारे लिए सब चीजे ले आयीं.”वो बोली.
हाँ…रेजर था…वो भी नया…बिना इस्तेमाल किया…मेरी पसंद वाला ब्रश भी था…लेकिन ..शेविंग क्रीम …
“हे क्रीम कहाँ है…उसके बिना .” मैंने उसकी ओर देखा.
” अरे कर लो ना यार …क्या फरक पड़ता है… ” उसने मुझे फुसलाया.
” अरे कर लो ना यार …क्या फरक पड़ता है… ” उसने मुझे फुसलाया.
” अच्छा थोड़े देर बाद आज रात ही को तो…मैं करूँगा …तुम्हारे साथ बिना क्रीम के बिना कुछ अगाए…तो पता चलेगा… मैंने शरारत से छेडा.
” तुम ना हरदम एक ही बात…” कुछ मुंह फुला के वो बोली Phir हंस के कहने लगी… अरे यार उसकी बात और है और इसी बात और है…”
” अच्छा जी तुम्हारी मुलायम है मलमल की और मेरे गाल है टाट के” मैंने और छेड़ा.
प्यार से मेरे गालों को सहला के बोली, ” अरे मेरे यार के गाल तो गुलाब हैं…” और तिरछी आँख कर के मुझे घूरा और बोला, ” आज क़स क़स के ना रगडा तो कहना..इन गालों को ..
और मुड गयी. फिर जाते जाते बोलने लगी…” तुम ना बाबा इक ही हो…ले आती हूँ कहीं से ढूंढ ढाढ के तुम भी क्या याद करोगे…”
फिर बाहर से उठक पटक..धडाक पडाक ड्राअर खोलने, बंद करने की आवाजें…
गुस्से में लग रही थी वो..
” मिल गयी है लेकिन कम है मैं दबा दबा के अपनी हथेली में निकाल के ले आऊं…”उसकी खिझी हुयी आवाज आई.
अब मना करना ख़तरे से खाली नहीं था. मैंने मस्का लगाया..
” हाँ ले आओ ले आओ…तू बहूत अच्छी…हो…”
” ज्यादा मक्खन लगाने की जरुरत नहीं है…..” वो बोली. थोड़ा गुस्से में अभी भी लग रही थी.
उसने हथेली में रोप कर ढेर सारी पीली पीली ,क्रीम जैसी ….मैंने लेने के लिए हाथ बढ़ाया तो उसने झट मना कर दिया…
‘ मंगते…हर जगह हाथ फैला देते हो…तुमने इधर उधर गिरा दिया तो…फिर मैं कहाँ से ढूंढ कर लाऊँगी..इत्ती मुश्किल से तो …और इसके बिना तुम्हारा काम ..लाओ अपने मुलायम मुलायम हेमा मालिनी के गाल …”
और उसने चारो ओर अच्छी तरह चुपड दिया. जरा भी जगह नहीं बची ….उसके हाथ में अभी भी थोड़ी सी क्रीम बची थी.
उसके होंठों पे शरारत भरी मुस्कान खेल रही थी.. जबतक मैं समझ पाता..उसका हाथ तौलिये के अन्दर..
” अरे यहाँ पर भी तो…यहाँ भी बाल तो बनाते होगे…क्रीम तो लगाना पडेगा ना ..कहीं कट वाट गया तो …नुक्सान तो मेरा ही होगा..”
फिर वो मुझे अदा से घूरती रही…
‘” तुम न…” मेरे समझ में नहीं आरहा था क्या बोलूं …
“मैं क्या … वो अब पूरी शरारत से मुस्करा रही थी….मैं बहूत बुरी हूँ…ना..”
मेरी समझ में नहीं आया और मैंने बाहों में पकड़ चुम्मी ले लिया.
वो बाथ टब की ओर देख रही थी.
” साथ साथ नहाते तो इतना मजा आता… वो बोली.
तो आओ ना…मैंने दावत दी.
“अरे नहीं यार मेरी वो साल्ल्ली …वो पांच दिन वाली सहेली ..ऐसे गलत समय आई है ना …वरना ये मौका मैं छोडती …लें जब हम लौट के आयेंगे ना तो एक दिन तुम्हारे साथ जरुर नहाउंगी..तुम्हे नहालाउंगी भी और…धुलाउंगी भी…”
तब तक चन्दा भाभी ने आवाज दी…और वो परी उड़ चली लेकिन उसके पहले,
” हे, तुम ये टावेल लपेटे टब में जाओगे क्या… ” और खिलखिलाते हुए उसने मेरी टावेल खींच ली और मैं…’वो’ ९० डिग्री पे था. जाते जाते वो फिर ठिठक गयी और ” उसकी” ओर देख के , वो शैतान मुस्करा के पूछने लगी..
” अच्छा जब मैंने तुम्हारी लुंगी खींची थी तो तुम उसे छिपा क्यों रहे थे ..”
‘ वो ..वहां पे…” मैं हकला रहा था..” वहां पे गूंजा ..जो थी…”
” अच्छा जी..” वो इत्ते जोर से हंसी … “तुम ना बुद्धू थे बुद्धू रहोगे…गुंजा…अरे यार…वो साल्ली तेरी साल्ली है…उसने खुद बोला ..उसकी मम्मी ने बोला, इत्ता वो आज तुम्हे छेड़ रही थी.. अरे तुम्हारी जगह कोई और होता ना…तुम दिखाने से डर रहे थे…वो उसे अब ता हाथ में पकड़ा देता..घुसेड़ने को सोचता…और तुम ना…
” असल में वो अभी… “मैं अभी भी झिझक रहा था…” वो अभी…”
वो मेरे मन की बात जान गयी..
” अरे यार वो एक क्लास में दो बार पढ़ी है ..अपने पापा के साथ दुबई गयी थी इसलिए …वरना मुझसे थोड़ी ही छोटी है…लें अब उसका नाम ले के ६१-६२ मत करने लगना …जाओ नहाओ…धोओ…” मुस्करा के वो बोली और चल दी.
मैंने शेव करनी शुरू की. क्रीम चुनचुना रही थी…झाग भी नहीं बन रहा था. मुझे लगा शायद इम्पोर्टेड है इसीलिए…मैंने दो बार शेव बनाई रेजर काफी शार्प था. फिर गुड्डी की बात याद आ गयी नीचे के बालों के बारे में..क्रीम तो उसने वहां भी खूब लिथड दी थी. कभी कभी वहां के बाल मैं साफ करता ही था.
मैंने कर लिया. इक दम साफ हो गए. फिर मैं तब में जा के बैठा. थोड़ी देर में सारी थकान .मैल सब कुछ दूर …और उस के बाद शावर शैम्पू …जब मैं तैयार हो के बाहर निकाला तो एकदम हल्का जैसे कहते हैं ना लाईट एस फेदर …बिलकुल वैसा…हाँ इक बात और जब मैं ने कैबिनेट खोली तो मुझे उसमें …वो बोतल दिख गयी जिसमें से चन्दा भाभी ने …वही सांडे के तेल वाली ..उन्होंने समझाया था ..दो बार रोज इस्तेमाल से परमानेंट फ़ायदा होता है तो मैंने बस थोडा सा.. लगा लिया… ( बाद में पता चला कल कड़ा और खड़ा करने के साथ उसमें से एक गंध निकलती है जिसका लड़कियों पे बहोत मादक और कामुक असर होता है. )मुझे अच्छा लग रहा था लें साथ में कुछ अन इजी भी…मैंने शीशा देखा लें समझ में नहीं आया. मैंने गुंजा का दिया टाप और बार्मुडा पहना और कमरे में आ गया.
बाहर गुड्डी कुछ कर रही थी.
मेरी निगाह उसी पे लगी रही.
क्या है उस जादूगरनी में ….मैं सोच रहा था.
सब कुछ …जो तुम चाहते हो…बल्कि उस से भी बहोत ज्यादा…पकड़ लो कस के अगर वो फिसला गयी ना तो पूरी जिंदगी पछताओगे. मेरे मन ने कहा.
भाभी ने एक बार मुझसे पुछा था तुम्हे कैसी लड़की पसंद है ( असल में भाभी बीइंग भाभी …उन्होंने कहा था तुम्हे कैसा माल पसंद है.)
शर्माते झिझकते, मैंने बोला…
” असल में …वो वो…जो ..दीवाल से सट कर कड़ी हो…फेस कर के उस की और तो तो…”
” अरे यार …तो तो क्या लगा रखी है…बोलो ना साफ…साफ…” भाभी बोलीं.
” वो…जो ..दीवाल से सट कर कड़ी हो…फेस कर के उस की और तो पहली चीज जो दीवाल से लगे तो वो उसकी …नाक ना हो…”. मैंने बहोत मुश्किल से कहा.
उन्हह उन्ह…एक पल में वो समाजः गयी पर मुझे छेडते हुए कहा … ” अच्छा, तो उसकी नाक छोटी हो…समझ गयी मैं…” बड़ी सीरियस हो के वो बोलीं.
” ना ना…” मैं कैसे समझाऊ उनको ..मेरी समझ में नहीं आ रहा था.
वो हंसते हंसते दुहरी हो गयीं…” अरे साफ साफ क्यों नहीं कहते की तुम्हे बिग बी पसंद है…सही तो है…मुझे भी जीरो फिगर एकदम पसंद नहीं…”
मेरी निगाह गुड्डी से चिपकी हुयी थी.
वो झुकी हुयी थी. टेबल ठीक कर थी. और उसके दोनों उरोज ..कसी कसी फ्राक से…एकदम छलकते हुए..मेरा मन कह रहा था बस जाके दबोच लूं…गुंजा कह रही थी ना की गुड्डी को स्कूल में टाइटिल मिली थी…बिग बी…एकदम सही टाइटिल थी..
उसकी चोटियाँ भी खूब मोटी घनी और सीधे नितम्बों की दरार तक…
और नितम्ब भी एकदम परफेक्ट..कसे रसीले…
लम्बाई भी उसकी उम्र की लड़कियों से एक दो इंच ज्यादा ही थी.
वो इन्नोसेंट चेहरा ..लेकिन क्या शैतानी, शरारत छिपी थी उनमें …वो दो काली काली आँखे…उन्होंने ही तो लूट लिया था मुझे…
लेकिन सबसे बढ़कर उसका एटीटयुड…
दो बातें थीं…एक तो वो हक़ से…मुझे कोई चाहिए भी था ऐसा..शायद मैं बचपन से ज्यादा पैम्पर् था इसलिए…थोड़ी डामीनेटिंग…और हक़ भी पूरे हक़ से …अगर मैं कोई चीज खाने में मना करता था तो वो जान बूझ के डाल देती थी मेरी थाली में ..और मेरी मजाल जो छोडूँ…किसी भी चीज पे…
और इसी के साथ उस का विश्वास…एक बार वो मुंडेर के सहारे झुकी थी…थोड़ी ज्यादा ही झुक रही थी…मैंने मना किया ..” हे गिर जायेगी’
वो आँख नचा के बोली….” तुम किस मर्ज की दवा हो…बचा लेना..” उस का मानना था वो भी कुछ करे मैं हूँ ना …और मैं कुछ भी करूँ सही ही होगा….
तभी मेरी निगाह फिर उस पे पड़ी. वो मुझे ही देख रही थी. उस ने एक फ्लाईंग किस दी..और मैंने भी जवाब में एक…
सर हिला के उसने मुझे बुलाया.
मैं जब पहुंचा तो बहोत बीजी थी वो..टेबल पे प्लेटें ढेर सारा सामान…

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